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धुव के० नित्यपणो ए तीन परिणमनपणे सर्वदा जे परिणमे तेने द्रव्य कहिये. एटले तेहिज गुण कारणकार्य वे धर्मे समल, काले परिणमे छे. कारण विना कार्य थायज नही अने कार्य करे नही ते कारण पण समजवू नहीं, जे उपादानकारण 5 तेहिज कार्य थाय छेते कारणतानो व्यय अने कायतानं उपजवं समकाले थाय छ वली कारणपणो सम नवो नवो छे
अने कार्यपणो पण समय समय नवो नवो छे ते माटे कारणपणानो पण उत्पाद व्यय छे अने कार्यपणानो पण उत्पाद | व्यय छे अने गुणपिंडपणे द्रव्यधारणपणे ध्रुव छे एवी परिणतिय परिणमे ते सत् के० छतिवंत द्रव्य जाणवो एटले ए * हालक्षण ते द्रव्यास्तिकनय तथा पर्यायास्तिकनय ए वे भेला लइने कस्यो छे. जे ध्रुवपणो ते द्रव्यास्तिकधर्म ग्रह्यो छे अने,
उत्पाद व्यय ते पर्यायास्तिकधर्म ग्रह्यो छे ते माटे ए लक्षण संपूर्ण छे, ए तत्त्वार्थकारकर्नु वाक्य छे. | तथा बली बीजुं लक्षण तत्त्वार्थमाज कडुं छे. एक द्रव्यमां वद्धामा स्वकार्यगुणे वर्तमान ते गुण अने पर्याय ते । गुणनुं कारणभूत द्रव्यन भिन्न भिन्न कार्यपणे परिणमे द्रव्यगुण ए बेहुने स्वाश्रयीपणे परिणमन ते थे छे जेमा ते द्रच्या
कहिये एटले गुण तथा पर्यायवंत ते द्रव्य कहिये ते द्रव्य एकना वे खंड थायज नही ए मूल द्रव्यन लक्षण छे अने, बजे घणा परमाणुना खंधने द्रव्य मान्यो छे ते उपचारें जाणवो जेनी परिणति त्रण कालमध्ये ते रूपने त्यजे नही ते -
न्य पोतानी भूल जात त्यजे नही जेने अगुरुलघुर्नु षगुण हानिवृद्धिरूप लक्षण चक्र एकठो फिरे ते एक द्रव्य अने: जेने जूदो फिरे ते भिन्न द्रव्य कहियें एटले धर्म, अधर्म, आकाश ए एक एक द्रव्य छे अने जीव असंख्यातप्रदेशरूपा एक अखंड द्रव्य छे. एवा जीव सर्वलोकमध्ये अनंता छे ते जीव सिद्धमां वधे छे अने संसारीपणामां ओछा थाय छे
*SATTA