________________
नशी त के० तिहां १ सर्व इयने लिपे उत्तरसामान्यस्वभाव नित्यत्व अनित्यत्वादिक तथा विशेषस्वभाव ते पारेणामिकत्वादिक तेनो आधारभूतधर्म ते धर्मने तीर्थंकरदेव सामान्यस्वभाव अस्तित्वरूप कहे छे २ तथा, गुणपर्यायनो अधारवंत पदार्थ तेने वस्तुत्व कहियें अने, ३ अर्थ जे द्रव्य तेनी जे क्रिया, जेम धर्मास्तिकायनी चलनसहाय क्रिया, अधर्मास्तिकायनी थिरसहाय क्रिया, आकाशद्रव्यनी अवगाहरूप क्रिया, जीवनी उपयोगलक्षण क्रिया तथा पुद्गलनी मिलवा विखरवारूप क्रियानो करवापणो एटले जे पर्यायनी प्रवृत्ति ते अर्थक्रिया अने अर्थ क्रियानो आधारी धर्म तेने श्री सर्वज्ञदेवें द्रव्यत्वपणो को छे.
वली द्रव्यपणानुं लक्षणांतर कहे छे. उत्पादपर्यायनी जे प्रसवशक्ति एटले आविर्भाव लक्षण जे शक्ति तेना व्ययीभूत पर्यायनो तिरोभाव थयो अथवा अभावधवा रूप शक्तिनो जे आधारभूत धर्म तेने द्रव्यत्व कहियें.
४ स्व के० पोते आत्मा अने पर के० पुङ्गलादिक धर्मास्तिकायादिक अन्य द्रव्य तेने यथार्थपणे जाणे ते ज्ञान कहियें. ते ज्ञान पांच भेदें छे. ते ज्ञानना उपयोगमां आवे एवी जे शक्ति तेने प्रमेयत्वपणो कहिये ते प्रमेयपणो सर्व द्रव्यनुं मूल धर्म छे, प्रमाणमां वसाच्यो जे वस्तु तेने प्रमेयपणो कहियें. ते सर्व गुण पर्याय प्रमेय छे अने आत्मानो ज्ञानगुण तेमां प्रमाणपणो तथा प्रमेयपणो ए वे धर्म छे, पोतानो प्रमाणपणो ते पोतेज करे छे, दर्शनगुणनो प्रमाण ज्ञानगुण करे छे, | केमके ज्ञानगुण ते विशेष छे. जे सावयव होय ते विशेषज होय अने जे विशेष होय ते ज्ञानथीज जणाय. दर्शणगुण ते सामान्य धर्मनो ग्राहक छे ते पण प्रमाण कद्देवाय पण प्रमाणना भेद कह्या छे. तिहां ज्ञानज प्रधुं छे तेनुं कारण जे