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यथार्थपणे निर्धार सहित जाणपणो प्रवते ते जीवने द्रव्यानुयोगें तत्त्वज्ञान प्रगटे तेथी जे आत्मगुण प्रगटे तेथी जे || | आत्मगुण प्रगटे ते आत्मगुणरक्षणायेंज प्रवर्ते एहवी स्वरूपानुयायी आत्मगुणनी प्रवृत्ति तेहने धर्म करी सद्दहे ते माटे स्याद्वादपरिणामी पंचास्तिकाय छे ते स्याद्वादरूप ज्ञान ते नयज्ञाने थाय माटे नयसहित ज्ञान करवू ते नयज्ञान अति दुर्लभ छे. अने नयनी अनंतता पजाबश्या अक्षणपझा सावइया चेव हुँति नयवाया ॥ ते जे पूर्वापर सापेक्ष नहीं है। ते कुनय कहिये. अने सर्वसापेक्षपणे वर्ते ते सुनय कहिये. ते मूल सात नय छे, तेनुं स्वरूप अल्पमात्र लखिये छैये.
नय ते ज्ञानगुणर्नु प्रवर्तन छे. जे कारणे एकद्रव्य मध्ये अनंता धर्म छे ते एकसमयें श्रुतोपयोगमां आवे नही, स्या माटे जे श्रुतज्ञाननो उपयोग असंख्यात समय धाय. अने वस्तु मध्ये तो अनंता धर्म एकसमये परिणमता पामिये तेवारे श्रुतज्ञान सत्य थाय नही तेमाटे नयें करी जाणे तथा यद्यपि केवलीनो उपयोग एकसमयी छे तेमाटे जाणयामां नयन कार्य केवलीने पडे नही पण वचने कहेता केवलीने पण नयें करी कहेQ पडे, कारण के वचन तो क्रमे करीने वोलाय छे अने वस्तुधर्म अनंता एकसमयकाले छे तेमाटे नयें करी कहे वली जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणपूज्य कहे छे:
जीवादि द्रव्यमा जे गुण छे ते अनंतस्वभावी छे, गुणनी छति तेनुं परिणमन तेनी प्रवृत्ति तेमा जे समये कार-18 णता ते समयेज कार्यता इत्यादि अनेकपरिणतिसहित छे तेथी कोइक रीते सर्वन भिन्नाभिन्नपणे ज्ञान थाय ते नयथी। थाय. माटे समकितरुचि जीवने नयसहित ज्ञान करवू जे एटला धर्म सर्वद्रव्य मध्ये रह्या छे माटे प्रथमतो श्रीगुरुकृपाथी द्रव्यगुण पर्याय ओलखावे छे ए पीठिका कही. हवे मूलसूत्रना अर्थ- व्याख्यान करे छे.
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