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मान के प्रतिमानें बहुमाने सिद्धनो बहु-मान छे तथा सुधर्मा सभामाहिं जिननी दाढा छे ते वंदनीक पूजनीक छे ते तो अजीव स्कंध हे तथा तुमे लख्यो जे परदेशी राजाए प्रतिमा कां न करी ते परदेशी श्रावक धया पछी केटलोक जीच्या छे ते तथा सर्व श्रावक एकज करणी करे एसो नियम छे तथा परदेशीए तथा आणंद श्रावके कोइक साधुने पडिलाभ्या नथी ते माटे तुम्हे साधुने विहराच्यामे दोष मानस्यो ए विचारी ज्यो ज्यो तथा लख्युं छे जे सूरीआभे | जे प्रतिमा पूजी ते राजधानीना मंगलीक माटे पूजाकरी ते तो खोडुं बोलो छो ए पाठ सूत्रमें नथी सूत्रमें तो एहवो पाठ के हियाए सुहाए खेमाए निरसेसाए आणुगामीवत्ताए भविस्सई निश्रेयस कहेता मोक्ष भणीए अर्थ छे तथा पच्छा शब्दे जे इह लोकनो अर्थ छे इम कहे छे ते मूढ छे दर्दुर देवताने अधिकारे पच्छा शब्दे आवता भवनो अर्थ छे तथा आचारांगसूत्रे जस्सपुधियिनो तस्स पछायिनो इहां पूर्वं शब्दे पूठलो भव पच्छा शब्दे आवतो भव लीधो छे तथा ए भवे समकितनो लाभतो घणो छे तथा तीर्थंकर वांद्यानो फलनो पाठ उबवाई मध्ये तथा पंचमहा व्रत पाल्यानो पाठ आचारांग मध्ये तिहां पण हियाए इत्यादिक पाठ छे ते वे ठेकाणे लाभ मानो छो तो जिनप्रतिभा ठामे ना स्याने कोछो अने किहां जिनप्रतिमा पूजानो पाप कह्यो नथी अने होयतो देखाडो तुमं लिख्युं जे भगवंते हिंसानी ना कही छे तेतो अमे किहां कछु जे हिंसा करवी, पण भगवंते किसे सूत्रे प्रतिमा पूजानी ना कही नथी प्रतिमानी १७ प्रकारनी पूजा सूत्रे कही छे तथा तुमे प्रतिमानी पूजा हिंसामां गिणो छो ते इमनथी प्रतिमानी पूजातो विनय तथा वैयावच्च धर्ममां छे तथा पूजा हिंसामे गणी तो ठाणांगे नदीमें पडती साध्वीने साधु काढे तेमां हिंसा