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२ मृषावाद विरमणप्रत कहे छे. जूहूं वचन बिलकुल बोलवू नहीं ते व्यवहार मृषावाद विरमणनत अने जे पर पुद्ग-1 लादिक वस्तुने आपणी कहेवी ते मृषावाद वचन छे अने जीवने अजीव कहे तथा अजीवने जीव कहे इत्यादिक
मृषावाद छे. अधवा सिद्धान्तना अर्थ खोटा कहे ए मृषावाद जेणे छाड्यो ते निश्चे मृषावाद | [विरमणनत कहिये एटले बीजा अदत्तादानादिक व्रत जो भांजे तो तेनो मात्र चारित्र भंग थाय पण ज्ञान दर्शननो18 भंग न थाय अने जेणे निश्चें मृषावादनो भंग को तेथे समकेत सपा शाल भने चारित्र ए त्रणेनो भंग कस्यो तथा |आगममा एम कडं छे जे एक साधुयें चोथो व्रत भंग कस्यो अने एक साधुयें बीजो मृषावाद व्रत भंग करयो तो जेणे चोथो व्रत भंग कस्यो ते आलोवण लेइ शुद्ध थाय पण जे सिद्धान्तना अर्यनो मृषा उपदेश आपे ते आलोवण लीधे|3
पण शुद्ध थाय नही. I ३ अदत्तादान विरमण व्रत कहे छ जे पारकुं धन वस्तु छुपावे चोरी करे ठगबाजी करी लीये ते चोरी छे एटले
पारकी वस्त धणीना दिधा विना लेखी नहीं ए व्यवहारथी अदत्तादान विरमण प्रत जाणवं अने जे पांच इंद्रियना। पत्रेवीस विषय आठ कर्म वर्गणा इत्यादिक परवस्तु लेवी नही तथा तेनी वांछा न करवी ते आत्माने अग्राह्य छे माटे |
ते निश्चथी अदत्तादान विरमण व्रत कहियें इहां कोई पूछे जे विषयनी अने कर्मनी वांछा कोण करे छे तेने उत्तर जे* पुण्यने लेवा योग्य छे ते जीव कर्मनी वांछा करे छे जे पुण्यना ४२ भेद छे ते चार कर्मनी शुभ प्रकृति छे एटले जे| व्यवहार अदत्तादान तो नथी लेता पण अंतरंग पुण्यादिकनी वांछा छे तेने निश्चे अदत्तादान लागे छे.
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KeXX CRIMAR
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