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गुण परमाणु अधिक छे इहां १ औदारिक, २ वैक्रिय, ३ आहारक, ४ तैजस, ए चार वर्गणा चादर छे तेमां पांच वर्णबेगन्ध-पांच रस-आठ स्पर्श ए बीस गुण छे. तथा १ भाषा २ उसास ३ मन ४ कार्मण ए चार वर्गणा सूक्ष्म छे एमां पांच वर्ण-वे गन्ध पांच रस- चार स्पर्श- ए सोल गुण छे अने एक परमाणुमा एक वर्ण एकगंध एकरस-वे स्पर्श ए पांच गुण छे एम पुगल खंधना अनेक भेद छे.
ए व्यवहार नयना छ भेद छे १ शुद्धव्यवहार ते आगला गुण ताणाने होडवं अने ऊपरना गुणठाणानुं ग्रहण कर अथवा ज्ञान-दर्शन- चारित्र गुण ते निश्चयनय एकरूप छे पण ते शिष्यने समजाववाने जूदा जूदा भेद कहेवा ते शुद्ध व्यवहार छे. २ जीवमां अज्ञान राग द्वेष लाग्या छे ते अशुद्ध पणुं छे माटे अशुद्ध व्यवहार. ३ जे पुण्यनी क्रिया करवी ते शुभ व्यवहार ४ जेथ की जीव पापरूप अशुभकर्म करे ते अशुभ व्यवहार. ५ धन- घर - कुटुंब प्रत्यक्ष सर्व आपणाथी |जूदा जूदा छे पण जीवें अज्ञानपणे आपणा करी जाण्या छे ते उपचरित व्यवहार. ६ शरीरादिक परवस्तु यद्यपि जीवथी जुदी छे तोपण परिणामिक भाव लोलीपणे एकठा मिली रह्या छे तेने जीव आपणा करी जाणे छे ते अनुपचरित व्यवहार जाणयो ए व्यवहार नय को.
हवे ऋजु सूत्र नयनो विचार कहे छे जे अतीत काल अने अनागत कालनी अपेक्षा न करे पण वर्त्तमान काले जे वस्तु जेवा गुणं परिणमे वर्त्ते ते वस्तुने तेवेज परिणामे माने माटे ए नय परिणामग्राही छे जेम कोइक जीव गृहस्थ छे पण अंतरंग साधुसमान परिणाम छे तो ते जीवने साधु कहे अने कोइक जीव साधुने देषे छे पण मनना परिणाम