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तथा अभव्य तथा सर्वना सिद्ध समान छे माटे सर्व जीवनी सत्ता एक सरीखी छे केमके ए आठ प्रदेशने बिलकुल *कर्म लागता नथी ते "श्री आचारांग सूत्रनी श्री सिलांगाचार्य-कृत टीकाना लोकविजयाध्ययने प्रथमोद्देशके साख छ। ॐ तिहाथी सविस्तर पणे जोबुं." हा हवे सत् तथा असत् पक्ष कहे छे ए छद्रव्य ते खद्रव्य स्वक्षेत्र स्वकाल अने स्वभावपणे सत् एटले छता छे अने पर |
द्रव्य परक्षेत्र परकाल तथा परभावपणे असत् एटले अछता छे तेनी रीत बताववाने अर्थे छए द्रव्यनो द्रव्य क्षेत्र काल | ४ भाव कहिये थे. है धर्मास्तिकायनो मूलगुण चलण सहायपणो ते स्वद्रव्य, अधर्मास्तिकायनो मूलगुण स्थिति सहायपणो ते स्वद्रव्य
आकाशास्तिकायनो मूल गुण अवगाह्मणो ते स्वद्रव्य, कालद्रव्यनो मूल गुण वर्तनालक्षणपणो ते स्वद्रव्य, तथा पुद्गलनो
मूलगुण पुरण गलनपणो ते स्वद्रव्य, अने जीवद्रव्यनो मूलगुण ज्ञानादिक चेतनालक्षणपणो ते स्वद्रव्य ए छद्रव्यनो है स्वद्रव्यपणो कह्यो.
हवे स्वक्षेत्र ते द्रव्यनो प्रदेशपणो छे ते देखाडे छे तिहां एक धर्मास्तिकाय बीजो अधर्मास्तिकाय ए वे द्रव्यनो स्वक्षेत्र असंख्यात प्रदेश छे अने आकाशद्रव्यनो स्वक्षेत्र अनंतप्रदेश छे कालद्रव्यनो वक्षेत्र समय छे पुद्गलद्रव्यनो स्वक्षेत्र । एक परमाणु छे ते परमाणु अनंता छे जीवद्रव्यनो स्वक्षेत्र एक जीवना असंख्याता प्रदेश छे. हवे स्वकाल ते छए द्रव्यमा अगुरुलघुनोज छे अने ए छ द्रव्यना पोतपोताना गुण पर्याय ते सर्व द्रव्यनो स्वभाव
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