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(सधेविचउकसाया ) सर्व दंडकोके विषे चारोही कषाय होते है इति चोवीश दंडकके छठा कषायद्वार ।। (लेसछक(गभतिरियमणुपसु ) छेहीलेसा गर्भज तिर्वच और मनुष्यको होते है ( नारयतेऊवाऊ ) और नारक तेजकाय बाउकाच ( विगला ) और तिनविकलेंद्रि एसे छे दंडकोके विषे प्रथमकी तीन लेस्या होता है ( वैमाणियतिलेसा ) और वैमाणिक | देवोंको अन्तकी तीन लेस्या होति है ॥ १४ ॥
जोइसियतेउसा सेसासवे विहुतिचउलेसा । इंदियदारंगमं मणुआणंसत्तसमुग्धाया ॥ १५ ॥
( जोइसियतेउलेसा) और ज्योतिपीको एक तेजोलेस्याही होति है ( सेसासबेविहुतिचउलेसा ) और शेष सब दंडकोके विषे कृश्नादि चार लेस्या है इति चोवीस दंडके लेस्याद्वार ७ ( इंदियदारंसुगमं ) और इन्द्रियद्वार तो सुगम है ८ ॥ ( मणुआ सत्तसमुग्धाया ) मनुष्यको सातोही समुद्घात होति है ॥ १५ ॥
वेण सायमर वेतेय एयआहारे । केवलियस मुग्धाया सत्तइमेहुंतिसन्नीणं ॥ १६ ॥
( वेयण ) वेदना ( कसाय) कषाय ( मरणे ) और मरण ( वेडधिय ) वैक्रिय ( तेयएय ) तेजस और ( आहारे ) आहारक ( केवलियसमुग्धाया ) केवली समुद्घात ( सत्तइमेहुंतिसन्नीणं) इस प्रकारसें सातोही समुद्धात संन्नि-पंचन्द्री मनुष्यको होता है ॥ १६ ॥
एगिंदियाणकेवलि ते आहारगविणाउचत्तारि । तेवेउब्वियवज्जा विगलासन्नीणतेचेव ॥ १७ ॥