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है, फिर शान्मलि वृक्षके मध्यका ( हरिकूड) हरिकूट, और (हरिस्सस ) हरिसह ये दो कूट इन कूटांके साथ मिलाETणेसे (सठ्ठी) साठ भूमि कूट होते है ॥ पंचम कूट द्वार मिति ॥ १७ ॥
| भावार्थ-चोतीश विजयके चोतीश ऋषभ कूट और एक मेरु पर्वत, दुसरा जंबुवृक्ष तीसरा देवकुरु इन तीनांके | ॥ आठ २ भुमिकूट, फिर शाल्मलिवृक्षके वीच हरि कूट और हरिसह यह दो कूट, एवं भुमि कूटांकि संख्या साठ (६०)
होती है ।। १७ ॥ मागह वरदाम पभासं, तित्थविजएसु एरवय भरहे । चउतीसा तिहिंगुणिया, दुरुत्तरसयं तु तित्थाणं १८ | अर्थ-(विजएसु) बत्तीस विजय, व (एरवय ) ऐरवत, और (भरहे ) भरतक्षेत्र, इन प्रत्येक चोत्तीश स्थानोके .
अन्दर, एक (मागह) मागध, दुसरा (वरदाम) वरदाम, तीसरा (पभासं) प्रभास, ये तीनो (तित्थ) तीर्थ है, अतः (चउतीसा) चउतीशको (तिहिं ) तीनसें (गुणिया) गुणा करें तो (तु) फिर (दुरुचरसय तित्थाण) एकसो दो (१०२)
तीर्थ होते है ॥ १८॥ WI भावार्थ-वत्तीशविजय और एक ऐरवत, एक भरत इन चोतीश क्षेत्र में एक मागध. दुसरा वरदाम तीसरा प्रभास
यह तीन २ तीर्थ हरएक क्षेत्रमें होते है. अस्तु. एकसो दो ( १०२) सवी तीर्थोकी संख्या जानना ॥ १८ ॥ विजाहर अभिओगिय, सेढीओ दुन्निदुन्नि वेयड्ढे। इय चउगुण चउतीसा, छत्चीस सयं तुसेढीणं ॥१९॥
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