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चउसत्त अट्ठ नवगे, गारसकूडेहिं गुणह जह संखं।सोलस दुदु गुणयालं, दुवेयतगसट्ठि सय चउरो ॥१६॥
अर्थ-(सोलस) पदश पर्वताके (घर) च्यार च्यार कूट गिननेसै चोसठ होते है ॥ (दु) दो पर्वतांके (सत्त) सात २ कूट गिननेसै घवदे होते है. (दु) और दो पर्वतोंके (अ) आठ २ कूट गिननेसे शोले होते है. (गुणयालं) * एक कम चालीस पर्वतोंके (नवगे) नब २ कूट गिनते तीनसो इकावन (३५१) होते है. (दुवेय) दो पर्वतोंके (एगा
रस कूटेहिं ) इग्यारा २ कूट गिननेसै बावीस होते है. एवं पूर्वोक्त सर्व कूटें (गुणह) गुनतां (जहसंखं) यथासंख्या 2 ६ ( सय चउरो सगसहि) च्यारसे सड़सठ (४६७ ) होते है ॥ १६ ॥
भावार्थ-शोलोपर च्यार २ के हिसाबसें चौसठ, दोपर सात २ के हिसाबसें चवदा, दोपर आठ २ के हिसाबसे शोला उन चालीसपर नव २ के हिसाबसें तीनसो इकावन दोपर इग्यारा २ के हिसाबसे बावीस, एवं इगसठ पर्वतोपर च्यारसे सडसठ (४६७) कूट जाणना ॥ १६ ॥ चउतीसंविजएसु, उसहकूडा अट्ठमेरु जंबुमि । अट्ठयदेवकुराई, हरि कूड हरिस्सयसट्ठी ॥ १७ ॥
अर्थ-(चउतीसं विजएसु) चक्रवर्तिके चौतीस (३४) विजयमें एकैक ( उसहकूडा) ऋषभकूट है, और ( मेरु) मेरु पर्वतके व ( जंबुमि) जंबु वृक्षके (अ) आठ २ कूट है, पुनः (देवकुराई) देवकुरु अंदरभी (अ) आठ कूट