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अर्थ-(वेयडे) वेताज्यके ऊपर, एक (विजाहर ) विद्याधर और दुसरी (अभिओगिय) आभियोगिक देवांकी (दुझिदुन्नि) दो दो (सेढीओ) श्रेणिये है. तब (इय) ये (चउतीसा) चोतीश दीर्घ (लम्बे) वेताढ्यांको (चउगुण) | च्यार गुणा करणैसे (तु) फिर (छत्तीस सयं सेढीणं) एकसो छत्तीस श्रेणिये जंबुद्वीपमें होती है ।। १९ ॥
भावार्थ-प्रत्येक लम्बे वैताठ्यांपर, विद्याधर और आभियोगिक देवांकी दो दो श्रेणिये है । अतः प्रत्येकपर च्यार २ के हिसाबसै एकसो छत्तीश श्रेणिये होती है ॥ १९॥ |चक्कीजेअबाई, विजयाई इत्थहंति चउतीसा । महदह छ पउमाइ, कुरुसुदसगंति सोलसगं ॥ २०॥ | अर्थ-(चक्कीजे अबाई ) चक्रीजेतव्यानि, याने चक्रवर्ती जिन क्षेत्रको जीतकर उस्मै राज्य करे. एसे ( विजयाई)
विजय (इत्थ) इस जंबुद्वीपमे "वत्तीस महाविदेह एक ऐरवत एक भरत यह मिलकर (चस्तीसा) चउतीश (हुंति) है ॥ al (पउमाइ) पद्मादिक महाद्रह (छ) पट् याने. १ पद्म, २ महापद्म, ३ तिगिच्छि, ४ केसरी, ५ पुंडरीक, ६ महापु-15
ण्डरीक, यह छ है, पुनः (कुरुसु) देवकुरु और उत्तरकुरु इन दोनो क्षेत्रों में पांच पांच द्रह है. यह मिलकर (दसर्गति) दशद्रह हुए इसके साथ ऊपरके मिलानेसै (सोलसगं) सोलह (महद्दह) महान्द्रह इस जंबुद्वीपमें जाणना ॥ २०॥ | भावार्थ-जिस क्षेत्रको चक्रवर्ती जीतकर उस्मे राज्य करे उसको विजय कहते है, ऐसे विजय जंबुद्वीपमें, बत्तीश Is महाविदेह. एक ऐरवत. और एक भरत, यह चोतीश है ॥
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