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देवकुरु उत्तरकुरु यह दो युगलियांके क्षेत्र छोडकर, शेप च्यार क्षेत्रों के अंदर (वियत चउवह) वर्तुल वैताड्य च्यार है. फिर (इयरे ) इन वैताढ्योंसे इतर (चउरतीस) चउतीस लम्बे वैताब्य पर्वत है, पुनः (सोलसवक्खारगिरि) शोले वक्खारागिरि “विजयांके अंतरमे है" फिर (चित्त विचित्त) १ चित्त २ विपित्त यह दो पर्वत और है. इतर दो पर्वत, (जमगा) एक जमग दुसरा समग ॥ ११॥ भावार्थ-भरत १ हेमवत २ हरिवर्ष ३ महाविदेह ४ रम्यक ५ हिरण्यवत ६ एरवत ७ यह सातवाश क्षेत्र है ॥ |
तरकरु इन दोनो क्षेत्रों को छोड शेष च्यार क्षेत्रों में वर्तल वैताढ्य एक एक है. इनमें भिन्न चोतीश लम्चे, वैताळ्य, शोले वक्खारा गिरि, दो. चित्त १ विचित्त २ दो. जमग १ और समग २ यह सब मिल अलावन शास्वते - पर्वत, शेष आगे ॥११॥ |दोसय कणय गिरीणं, चउ गयदंताय तह सुमेरुय । छवासहरापिंडे, एगुणसत्तरिसयादुन्नी ॥१२॥ | अर्थ देवकुर और उत्तरकुरु इन प्रत्येक क्षेत्रमें पांच २ द्रह है. और एकैक द्रहके उभयतर्फ दश २ कंचनगिरि है. | अतः इन सबको मिलानेसै (दोसयकणयगिरीण) दोसो (२००) कंचनगिरि होते है, (च) फिर (चउगयदंता) | | च्यार गजदंते पर्वत है. (तह) तैसे (सुमेरु) एक सुमेरु (च) और इनके दोनो तर्फ, तीन २ मिलकर (छ) छ (वासहरा) वर्षधर, पर्वत है, इन सबको (पिंडे ) इकट्ठाकरणेसै (सयादुन्नी) दोसो (एगुणसत्तरि) एक कम सित्तर पर्वत होते है ॥१२॥
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