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(थावरसुरनेरइया) गन स्थावर तेरे देवता और एक नारक ऐसे सब मिलके उगणीसदंडकोके विषे (असंघयणाय) | संघयण नही है (विगलछेवठा) और तीन विकलेंद्रिको एक छेचठा संघयण है (संघयणछकंगष्भय) छे संघयण गर्भ-| जको (नरतिरिएसुविमुणेयबं) मनुष्य और तिर्यचको जान लेना ॥ इति चौविस दंडके संघयण द्वार ३ ॥ ११ ॥
सवेसिंचउदहवासन्ना, ससुरायचउरंसा । नरतिरियछसंठाणा हुंडाविगलिदिनेरइया ॥ १२ ॥ (सधेसिंचउदहया) सब दंडकोके विषे चार तथा दश (सन्ना) संज्ञा होती है ॥ इति चोयीश दंडकके चतुर्थ संज्ञाद्वार (सबेसुरायचउरंसा) सब देवोका समचोरस संस्थान है (नरतिरियछसंठाणा ) मनुष्य और तिर्यचको छही संस्थान होते है (हुंडाविगलिदिनेरईया ) विकलेंद्रि और नारकीको एक हुंडक ही संस्थान होता है ॥ १२ ॥ नाणाविहधयसूई बुब्बुहवणवाउतेउअपकाया। पुढवीमसूरचंदा-कारासंठाणओभणिया ॥ १३ ॥
(नाणाविह) नाना प्रकारका (धय ) ध्वजाके आकारे संस्थान (सूई ) सुईके आकारे (बुब्बुह ) जलके बुबुदाके ! आकारे ( वणवाउतेउअपकाया) अनुक्रमसें वनस्पतिकाय वाउकाय तेउकाय और अपकायका है (पुढवीमसूरचंदा-16 कारा) और पृथ्वीकायका मसूरकीदाल अथवा चन्द्र के आकारे (संठाणओभणिया) इस प्रकारसें चोवीश दंडकके
पंचम संस्थानद्वार कहा ॥ १३ ॥ * सवेविचउकसाया लेसछकंगष्भतिरियमणुएसु । नारयतेऊवाऊ विगलावेमाणियतिलेसा ॥ १४ ॥