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है। समिईगुत्तिपरीसह जइधम्भोभावणाचरित्ताणि । पणतिदुवीसदसबार पंचभेएहिंसगवन्ना ॥२५॥ ! | (समिइ ) समति (गुति ) गुप्ति (परीसह ) परिसह (जइधम्मो ) यतिधर्म (भावणा) भावना (परित्ताणि ) चारित्र | (पण) समिति पांच (ति) गुप्तितीन (दुवीस) परिसह वावीश (दस) दशविध यति धर्म (बारस ) वारह भावना
(पंच) चारित्र पाँच (भेएहिं ) ऐसे सब मिलके संघरके भेद (सगवन्ना) सत्तावन कहै जिसमें दो भेद है एक द्रव्य*संबर और दुसरा भावसंवर जो आते हये नवीनकर्मकोरोकदेना आत्मस्वरूपमे रहकर उसको भावसंवर कहते है और कर्म पुगलकी रुकावटको द्रव्यसंवर कहते हैं ॥ २५॥
इरियाभासेसणादाणे उच्चारेसमिईसुअ । मणगुत्तिवयगुत्तिकायगुत्तितहेवय ॥ २६ ॥ I (इरिया ) यतनापूर्वक रस्ते में चलना उसको ईर्यासमिति कहते है १ (भास) निर्दोष भाषाका जो बोलना उसे भाषास-12
मिति कहते है २ (एसणा) निर्दोष आहारको जो ग्रहण करना सो एषणासमति ३ (दाणे) दृष्टिते और पुजनीसे प्रमार्जन काकरके चीजको उपगरणको उठाना और रखना उसको आदाननिक्षेपणसमिति कहते है४(उच्चारे)कफ मल मूत्र आदिको
जतनापूर्वक परठना उसे पारिष्ठापनिका कहते (समिई) पांचसमिति (सुअ) यह ५ (मणगुत्ति) और मनोगुप्तिके तीन |
भेद है १ असत्कल्पनावियोग २ समताभावकी और ३ आत्मविचार ६ (वयगुत्ति) वचनगुप्तिजिसके तीन भेद है १ अशुद्ध | 5२ मिश्र और ३ शुद्ध व्यवहार ७ ( कायगुत्तितहेवय ) कायगुप्ति अशुभ करणीसे कायाको गापरखना ८ ॥२६॥ |