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योग तीन (पंच) पाँच ( चर) चार (पंच) पाँच (तिनी ) तीन (कमा) अनुक्रमसें जानलेना (किरिआओपणवीसं) क्रिया पंचीश (इमाओताओअणुक्कमसो) यह पचीस क्रियाको अनुक्रमसें कहते है ॥ २१ ॥ | काइयअहिगरणीआ पाउसिआपारितावणीकिरिया । पाणाइवायारंभिअ परिग्गहियामायवत्तीय ॥२२॥ । (काइय) कायाको अजतनासें वरतावनासो कायिकी निया ( अहिणणी दिस झिगा जीव नरकादिकका | | अधिकारि हो उसको अधिकरणिकी क्रिया कहते है जैसे कि शस्त्रआदिकसें जीवोंकी हत्या करना (पाउसिआ) जीव | अजीवसें जो द्वेष करना वह प्रद्वेषिकी क्रिया ३ (पारितावणी किरिया) अपने जीवको या दुसरा जीवोंको तकलीफ पहुंचाना वह पारितापनिकी क्रिया ४ (पाणाइवाय ) जो किशी जीवको प्राणोंसे रहित करना वह प्राणातिपातिकी [क्रिया ५ (आरंभिज) जो खेती आदि आरंभका काम करना सो आरंभिकी क्रिया ६ (परिग्गहिया) जो परिग्रह। रखना या परिग्रहपर ममत्त्व रखना सो परिग्रहकी क्रिया ७ (मायवत्तीअ) जो माया-कपटसे किशीको ठगना सो मायाप्रत्ययिकी क्रिया ८ ॥ २२ ॥ |मिच्छादसणवत्ती अपञ्चखाणायदिद्विपुट्रिअ । पाडुच्चिअसामंतो-वणीअनेसस्थिसाहत्थि ॥ २३ ॥ Ri (मिच्छादसणवत्ती) जिनेंद्रके सिद्धांतसे जो विपरीत एकान्तक्रियारुची आत्मज्ञानसे हीन बहिरात्मा सम्यक्तहीन
और इष्ठिरागी जिसको सत्यासत्यका निरणय नहीं सो मिथ्या दर्शनकी क्रिया ९ (अपच्चक्खाणाय) व्रतपचखान नही
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