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खुहापिवासासीउण्हं दंसाचेलारइथिओ । चरिआनिसिहियासिज्जा अक्कोसवहजायणा ॥ २७ ॥
(खुहा ) क्षुधापरिसह ६ (पिवासा) प्यासको सहन करना वह पिपासा परिसह २ (सी) शीत परिसह ३ (उण्हं) उष्ण परिसह ४ (दंसा) डैश परिसह ५ (चेला) अचेलक परिसह ६ (अरइ) अरति परिसह ७ (थिओ) स्त्रीके अंगउपाँगको सराग दृष्टिसें न देखे सो स्त्री परिसह ८ (चरिआ) चलनेका परिसह ९ (निसिहिया) नैपेधिकी इस लिये स्मशान और सिंहही गुगा आदि स्थानो में बाल सायनाना प्रकारके कष्टको सहता हुवा भी निषिद्ध न करे। सो १० (सिज्जा) संथारेकी भूमी कहांही उंची निची मिलजानेपरभी मुनि उद्वेग न करे सो सय्या परिसह ११ (अकोस) आक्रोश इस लिये कोइ गाली देवे तोभी सहन करे १२ (वह) वध इस लिये कोई दुष्ट जीव मुनिको मारे पीटे या जानसें मारडाले तो भी वीतरागी साधु क्रोध न करे १३ (जायणा) याचना परिसह १४ ॥ २७ ॥ __ अलाभरोगतणफासा मलसकारपरीसहा । पन्नाअन्नाणसम्मत्तं इअबावीसपरीसहा ॥ २८ ॥ | (अलाभ ) लाभान्तराय कर्मके उदयसें जो मागने परभी चीज न मिले तोभी समता रखे और विचारे कि अन्तरायकर्मकाउदय है सो अलाभ परिसह १५ (रोग) ज्यरादि अतिरोग आने परभी साधु चिकीत्सा करानेकी इच्छामी न करे किन्तु समभावसे सहनकरे सो रोगपरिसह १६ (तणफासा) तृणस्पर्शपरिसह साधुको तृणआदिको जो संथारो मिले तोभी शांत चित्तसें वेदना सहन करे १७ (मल) मलपरिसह इस लिये शरीरपर जो पसीनेसे मेल बद्ध