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(अणसणं) सर्वथा आहारका त्याग उपवासादिक सो अनशन तप १ (ऊणोअरिआ) आहार कमकरना सो जनोदरी तप २ (वित्तीसंखेवर्ण) वृत्तिका संक्षेप करना सो दृसिसंक्षेप तप ३ (रसच्चाओ) विगयका त्याग करना सो रसत्याग तप ४ ( कायकिलेसो) लोचादि जो कष्ट करना वह कायक्लेश तप ५ (संलीणयाय) सब इन्द्रियोंका दमन करना है वह संलीनता तप (बजोयतवोहोइ) इस प्रकार से बाह्य तपके छ भेद कहै ॥ ३४ ॥
पायच्छित्तविणओ वेयावच्चंतहेवसज्झाओ। झाणंउस्सग्गोविअ अभिंतरओतवोहोइ ॥ ३५॥ (पायच्छित्तं) जो शुद्ध मनसें गुरु महाराजके पास आलोयणा लेना सो प्रायश्चित तप १ (विणओ) विनय तप २ (वेयावचं) वैयावृत्य तप ३ (तहेवसझाओ तसेही स्वाध्याय तप ४ (झाणं) ध्यान तप ध्यानका स्वरूप गुरुगमसें धारना ५ (उस्सग्गोविअ) और कायोत्सर्ग तप (काउसग्ग) ६ (अभितरोतवोहोइ) ऐसे छ प्रकारसें अभ्यन्तर तप कहा ॥ ३५ ॥ | वारसविहंतवोनिजराय बंधोचउविगप्पोअ । पयईटिइअणुभागो पएसभेएहिनायवो ॥ ३६॥ |
(यारसविहं ) ऐसे सब मिलकर बारह भेदे ( तवो ) तप (निझराय ) निर्जराके लिये है। इति निर्जरातत्त्वम् (बंधो) अब बंधतत्त्व (चउविगप्पोअ) धार भेद है (पयई) १ प्रकृतिबन्ध (ठिइ) स्थितिबन्ध ( अणुभागो) ३ अनुभाग-1 अन्ध (पएस) और प्रदेशबन्ध ४ (भेएहिं ) ऐसे चार भेद- ( नायबो) जानना ॥ ३६॥
पयइसहायोवुत्तो ठिईकालावहारणं । अणुभागोरसोनेओ पएसोदलसंचओ ॥ ३७॥