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| अपनी योनिमें नहीं पैदा होते अर्थात् देव मरकर फिर तुरन्त देवयोनि में नहीं पैदा हो सकता। इस प्रकार नारक जीव | मरकर सुरन्त नरक में नहीं पैदा होता । हाँ एक दो जन्म दूसरी गतियों में बिताकर फिर देव या नरक - योनिमें पैदा हो सकते हैं. इसी तरह देव मरकर तुरन्त नरकयोनिमें नहीं जाता और नारक जीव मरकर तुरन्त देव - योनिमें नहीं पैदा हो सकता.
दसहा जियाण पाणा, इंदि-उसलाङ-जोगवला | एगिदियसु चउरो, बिगलेसु छ सत्त अट्ठेव ॥ ४२ ॥
( जियाण ) जीवोंको ( दसहा ) दस प्रकार के ( पाणा ) प्राण होते हैं: - ( इंदि - उसासाउ - जोगवलख्या ) ( प ) इन्द्रिय, श्वासोच्छ्रास, आयु और योगबलरूप, तीनबल ( एगिदिएस) एकेन्द्रियोंको ( चउरो ) चार प्राण हैं, ( विगलेसु ) विकलेन्द्रियोंको (छ सत्त अहेव ) छह, सात और आठ ॥ ४२ ॥
भावार्थ -- प्राणोंकी संख्या दस है: - पाँच इन्द्रियाँ, श्वासोच्छ्वास, आयु, मनोवल वचनवल और कायवल. इन दस प्राणोंमें से चार-त्वचा, श्वासोच्छ्वास, आयु और कायबल एकेन्द्रिय जीवोंको होते हैं; द्वीन्द्रिय जीवों को छह प्राणत्वचा, रसना ( जीभ ), श्वासोच्छ्वास, आयु, कायवल और वचनबल; त्रीन्द्रिय जीवोंको सात प्राण- त्वचा, जीभ, नाक, श्वासोच्छ्वास, आयु, कायवल और वचनबल; चतुरिन्द्रिय जीवोंको आठ प्राण-पूर्वोक्त सात, और आँख असन्नि सन्नि-पंचिं, दिए नव दस कमेण बोधवा । तेहिं सह विप्पओगो, जीवाणं भण्णए मरणं ॥ ४३ ॥