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भावार्थ-संसारका आदि नहीं है, न अन्त है: अनन्तवार जीव मर चुके हैं और आगे मरेंगे सुदैवसे यदि उन्हें || धर्मकी प्राप्ति हुई तो जन्म-मरणसे छुटकारा होगा. तह चउरासी लक्खा, संखा जोणीण होइ जीवाणं । पुढवाईण चउण्हं, पत्तेयं सत्त सत्तेव ॥ ४५॥
(जीवाणं ) जीवोंकी (जोणीण) योनियोंकी (संखा) सङ्ख्या (चउरासी लक्खा) चौरासी लाख (होइ) है. (पुढवाईण चउण्हं ) पृथ्वीकाय आणि चार की प्रध्येकाफी पोलिः मया ( सत्त सशेष ) सात सात लाख है ॥ ४५ ॥ | भावार्थ-जीचोंकी चौरासी लाख योनियाँ हैं, यह बात प्रसिद्ध है । उसको इस प्रकार समझना चाहियेः-पृथ्वीकायकी सात लाख, अपकायकी सात लाख, तेजःकायकी सात लाख और वायुकायकी सात लाख योनियाँ हैं; सबको मिला कर अट्ठाईस लाख हुई..
प्रयोनि किसको कहते हैं ? उ०—पैदा होनेवाले जीवोंके जिस उत्पत्ति स्थानमें वर्ण, गन्ध, रस और। स्पर्श, ये चारों समान हो, उस उत्पत्ति-स्थानको उन सब जीवोंकी एक योनि कहते हैं. दस पत्तेयतरूणं, चउदस लक्खा हवंति इयरेसु। विगलिंदियेसु दो दो, चउरो पंचिंदितिरियाणं ॥४६॥
(पत्तेयतरूणं) प्रत्येक वनस्पतिकायकी (दस) दस लाख योनियाँ हैं, (इयरेसु) प्रत्येक वनस्पतिकायसे इतर-साधारण वनस्पतिकायकी (घउदस लक्खा) चौदह लाख ( हवंति) हैं, (विगलिंदिएसु) विकलेन्द्रियोंकी (दो दो) दो || दो लाख हैं, (पंचिंदितिरियाणं) पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चोंकी (चउरो) चार लाख हैं ॥ ४६ ।।