Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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10 जनवरी 2011 जिनवाणी 39
जीवन में गुरु की महत्ता मधुर व्याख्यानी श्री गौतममुनि जी महाराज
गुरु का शिष्य पर महान् उपकार होता है। उनके द्वारा प्रदत्त सद्बोध शिष्य के जीवन का निर्माण करता है। प्रज्ञाशील गुरु किस प्रकार अपने शिष्य का मार्गदर्शक बनता है तथा किस प्रकार उसे अहंकारादि विकारों से रहित बनाता है, इसका सुन्दर निरूपण श्री गौतममुनि जी महाराज द्वारा गोटन चातुर्मास में फरमाए गए प्रस्तुत प्रवचन में हुआ है। प्रवचन का संकलन एवं सम्पादन सम्यग्ज्ञान प्रचारकमण्डल के कार्याध्यक्ष श्रीसम्पतराजजीचौधरी ने किया है।-सम्पादक
धर्मप्रेमी बन्धुओं! आपने एक बहुचर्चित दोहा सुना ही है जिसमें गुरु की महिमा बड़े सुन्दर रूप से प्रतिपादित हुई है
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, का के लागूं पांव।
बलिहारी गुरुदेव की, गोविन्द दियो बताय।। संसार के सभी धर्मों में व्यक्ति के जीवनोत्थान हेतु गुरु की भूमिका को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जैन दर्शन में तीन तत्त्वों को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है । ये तीन तत्त्व हैं- देव, गुरु और धर्म । इनमें गुरु का स्थान मध्य में है । गुरु का लक्ष्य अरिहन्त बनने का रहता है। धर्म से वह स्वयं जुड़ा रहता है और दूसरों को भी जोड़ता है। जैन वाङ्मय में तो चौदह पूर्वो के अतिशय ज्ञानी गणधर भी भगवान महावीर को संबोधन करते हुए उनके बारे में कहते हैं- "मेरे धर्माचार्य धर्मगुरु भगवान महावीर!" गणधर जैसे शिष्यों ने तीर्थंकर भगवान में भी गुरु तत्त्व को प्राथमिकता दी है। उनका भी भगवान को प्रथम सम्बोधन गुरु के रूप में होता है और उसके बाद भगवान के रूप में । यही कारण है कि जैन परम्परा में गुरु को 'गुरुदेव' अथवा 'गुरु भगवन्त' के विशेषण से संबोधित किया जाता है। मेरे कहने का तात्पर्य है कि जैन धर्म में गुरु को जीवन में कल्याण पथ के अभिमुख करने वाले एक परम हितकारी के रूप में सर्वाधिक पूज्य माना गया है। गुरु को एक ऐसे माली की संज्ञा दी है जो हमारे जीवन-उपवन में दिव्य गुणों के पुष्प उगाकर उसे सौन्दर्य प्रदान कर सुवासित करता है। गुरु को एक कुम्भकार की उपमा भी दी गई है। जो हमारे मृण्मय जीवनघट को चिन्मयता के बोध से मंगलमय घट बना देता है। गुरु को एक कुशल नाविक कहा गया है जो हमारी जीवन-नौका को भवसागर से पार करा देता है। गुरु को एक शिल्पकार भी कहा है जो एक अनगढ जीवन को गढ़कर उसे एक सुन्दर प्रतिमा का रूप दे देता है । गुरु की एक वैद्य से तुलना की गई है, जिसमें वह अनन्त भवों से पीड़ित जीव को संजीवनी बूटी देकर अमरत्व प्रदान करता है। अन्त में गुरु एक ऐसा प्रणेता है जो हमारे जीवन के कोरे पृष्ठों पर आनन्द की अमिट रेखाएँ उत्कीर्ण करता है।
बन्धुओं! वास्तव में तो 'गुरु' शब्द में ही गुरु का अर्थ अंतर्निहित है। गुरु वह है जो हमारे अंधकार को
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