Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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किया था । परम् पूज्य १०८ प्राचार्य श्री महावीर कीतिजी महाराज बड़े ही विद्वान, मृदुभाषी, बहुभाषी १८ भाषानों के ज्ञाता थे उन्हीं की संघस्थ परम पूज्य १०५ आयिका विजयामतो माताजी ने उनसे शिक्षा ग्रहण की तथा उन्हीं की प्रेरणा से ग्रन्थ लेखन का कार्य प्रारम्भ किया। परम पूज्य १ : कार्य श्री महावीर कीतिक पागज के समाधि से पूर्व अपना प्राचार्य पद पूज्य १०८ प्राचार्य श्री सन्मतिसागर जी महाराज को, गणपर पद पूज्य १०८ गराधराचार्य श्री कुन्थसागर जी महाराज को तथा गणिनी पद परम पूज्य १०५ ग० प्रा० श्री विजयामती माताजी को प्रदान किया । उक्त तीनों ही संघ अपने गुरुषों को परम्परानुसार कठोर तपश्चरण में संलग्न भारत के विभिन्न क्षेत्रों में धर्म की अपूर्व प्रभाबना कर रहे हैं। पूज्य माताजी पिछले कई वर्षों से दक्षिण भारत में धर्म को प्रभावना करते हुए वहाँ उपलब्ध ताड़पत्रों पर हस्तलिखित शास्त्रों का अध्ययन कर रही हैं। बहुत से शास्त्र अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं और न ही उनका हिन्दी अनुवाद ही उपलब्ध है पूज्य माताजी उन शास्त्रों का हिन्दी अनुवाद कर दक्षिण भारत भाषी ग्रन्थों से उत्तरी भारत के जैन समाज को अपने शुभ संस्कार अपने चरित्र निर्माण एवं धार्मिक प्रास्था की ओर प्रेरित कर रही हैं।
जैसा साहित्य हम पढ़ते हैं वैसा ही चरित्र हमारा बनता है, वैसे ही संस्कार हमारे मन, मस्तिष्क पर छा जाते हैं। अपने चरित्र निर्माण के लिए यदि सत् साहित्य पढ़े. किन्हीं महान व्यक्तियों का जीवन चरित्र पड़े तो अवश्य ही हमारे जीवन पर उसका प्रभाव पड़ेगा । पूज्य माताजी ने "महीपाल चरित्र" हमारे समक्ष रखा सभी ओर से उसकी प्रशंसा मुक्त कंठ से हुई।
हमारी समिति से प्रकाशित यह सप्तम् ग्रन्थ "जिनदत्त चरित्र" महान् विद्वान परम पूज्य १०८ प्राचार्य श्री गुरणभद्र स्वामी द्वारा ताड़पत्र पर लिखा गया था, जिसका हिन्दी अनुवाद परम् पूज्य माताजी ने सुबोध शब्दों में एवं रोषक शैली में पाठकों के समक्ष रखा है। श्री जिनदत्त स्वामी के चरित्र को पढ़कर पाठकों में जहाँ गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों का बोध होगा वहीं उन में पितृ भक्ति, गुरु भक्ति एवं धर्म के प्रति आस्था बढ़ेगी ऐसी मुझे प्राशा है । ग्रन्थ जन-जन के उपयोगार्थ प्रकाशन कराने में मद्रास जैन समाज
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