Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ मापने अनेकों को नती बनाया, त्याग, व्रत नियम देकर उनके जीवन को पवित्र बनाया है। श्री १०५ कुल भूषणमती जी को आपने कुन्यलगिरि जी में क्षुल्लिका दीक्षा दी थी। संघस्थ क्षु० १०५ जयप्रभा और क्षु० १०५ विजयप्रभा जी आपसे ही दीक्षित हैं। अापके सान्निध्य में ये लगभग १० वर्षों से अध्ययन कर रही हैं। आपकी शेली सरल सुबोध है और वचन युक्ति संगत हैं, जिससे बड़े-बड़े विद्वान भी आपके सामने झुक जाते हैं सभी प्रकार की शकामों का समाधान विद्वान लोग आपके पास करते हैं । युग-युग तक प्रापकी सुन्दर देशना हमारा मार्ग-दर्शन करती रहे, ऐसी हमारी भगवान से प्रार्थना है। अन्त में मैं गुरु चरणों में पुनः पुनः अपनी विनयाञ्जलि प्रस्तुत करती हूँ "गुरोः भक्ति गुरोक्त: गुरोभक्तिः दिने दिने । सदामेऽस्तु सदामेऽस्तु सदामेऽस्तु भवे भवे ॥ गुरु चरणों में श्रद्धावनत क्षु० १०५ अपप्रभा [ मां

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 232