Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आ उपरथी स्पष्ट समजाशेके देवालय स्तूप वगेरेनी स्थिति संख्याता कालनी छे, अने शाश्वत छे ते कोई पण व्यक्ति विशेष नथी, मात्र नाम गमे ते होय तेथी कांई ते अमुकज होय एम मानी शकाय नहीं।
वस्तुतः शाश्वत प्रतिमा ए जिनेश्वर देवनी प्रतिमा नथी, मात्र जिनेश्वर देवना नामने मलता नाम छे, अने मलता नाम थी जिनेश्वर देव मानी लेवाए केटले अंशे सुसंगत छे ते वांचकोज विचारी ले। अत्यारे घणाना नाम महावीर होय छे एथी तेने वर्धमान महावीर मानीने कोई देव तेमनी सेवामां आवतो नथी, के वर्धमान नामना साधुने कोई प्रभु तरीके वांदता पूजता नथी घणा रामचन्द्र नामना माणसो महेनत मजुरी करीने आजीविका चलावे छे, पण नाम मात्र थी ते बलदेव तरीके पूजाता नथी, गुजराती मां एक दुहो छे के -
“नाम मात्रने सांभली, मोहाता नहीं कोय।
कनक नाम धतुर मुं, हेम कडा नवि होय॥"
अर्थात् - कनक एटले सोनू-सुवर्ण खरं अने कनक एटले धतुरो पण खरो, कनक नामे धतुरो लेवाथी कांई तेना आभूषणों थोड़ाकज बनी शके छे? नामनी साथे तेनामां ते गुण होवो जोइये, गुण पूजनीय छे नाम नहिं, घणीए गंगा, सरस्वती, गोदावरी नामे बहेनो गंधाती अने गोबरी होय छे, ए जन समाज थी क्या अजाण्युं छे? एटले वर्धमानादि नाम उपरथी ते प्रतिमा जिनेश्वर नी होवानुं मानी लेवु ए मतमोह नुं परिणाम होय तेम केम न मानी शकाय*
*आ सम्बन्धी पंडित बेचरदासजी ए लखेल श्री रायपसेणिय सूत्र नो गुजराती अनुवाद मां मारो लखेल उपोद्घात वांचो।
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