Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तर मां कहे छे के -
“पौषधकर्या अगाउ घरदराशर मां पूजा करवी जोइए अथवा तो बीज करवानी भलामण करवी जोइए, पौषध लीधा पछी भलामण थइशके नहीं ।"
ज्यारे पौषध वाला ने जेनुं व्रत समय पुरतुंज छे अने ते पण पूर्ण नवकोटिना पच्चक्खाण वालुं नथी छतां एनाथी पूजननी भलामण पण थई शके नहिं, तो सर्व विरति अने ते पण जावजीव ना चारित्रवाला थी प्रतिमादि पूजन वगेरे नी भलामण थई शकेज नहिं ए तो देखीतीज वात छे।
श्री ठाणांगजी सूत्रनां पांचमें ठाणे त्रीजे उद्देशे धर्म नां पांच अवलम्बन-पांच आधार - कहेल छे ते " धम्मेसुणं चरमाणस्स पच निस्साट्टाणा पण्णत्ता तंजहा १ छक्काया २ गणो ३ राया ४ गाहावई ५ सरीरं अर्थात् छः काय, गण, राजा, गाथापति अने शरीर ए पांच अवलम्बन कह्या, पण धर्म के जे आत्मानो गुण अथवा आत्म मल दूर करवानुं पवित्र साधन ए धर्मना आधार रूपे प्रतिमाजी के कोई पण स्थावर तीर्थ बतावेल नथी, ए उपर थी पण सिद्ध थाय छे के धर्मकार्यआत्मकल्याण ना माटे मूर्ति पूजा - मूर्तिनी क्यांय पण जरूरियात श्री जिनेश्वर देवे स्वीकारेल नथी ।
शाश्वती प्रतिमा
शाश्वती प्रतिमा अने तेपण श्री जिनेश्वरदेवनी प्रतिमा शाश्वत होइ शकेज केवी रीते? जे वस्तु अनादि अनन्त होय तेज शाश्वत, तो जिनेश्वर देवनी प्रतिमा होय तो कोई पण काले ते जिनेश्वर देव थया होवा जोइए, एटले ओमनी आदि थई, अने ए जिनेश्वरदेव ना शरीर नो
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