Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जड़ बीज सामे गमे तेवी प्रबल प्रार्थना के भावना पण सफल थती नथी कारण के ए आंबानी गोटली के जुवार ने मात्र नाम आपेल छे, अथवा तो तेनी मिथ्या स्थापना करेल छे, जेथी ते फल दायक बनती नथी, कारण ते वस्तु मां नो मूल गुण होतो नथी एटले उद्यम करनार नो वर्षो नो उद्यम होय तो पण ते शून्य परिणामज निवड़े छे, ए सनातन सत्य छे। ए अनादि सत्य ने विकृत स्वरूपमा अबुधोने समजाववा गमे तेवा विद्वत्तापूर्ण युक्तिओं के कुयुक्तिओं वाला शास्त्रों रचवामां आवे के अर्हत् कथित शास्त्रों ना विपरीतार्थ करवामां आवे पण अथी अबीज वस्तु सबीज कोई पणकाले नज बना शके ।
एज रीते एकान्त ज्ञान, दर्शन, चारित्र अने तप वडे करीने तेमां पण खास करीने ज्ञानदर्शन जे अनन्त शक्तिमान आत्माना मूल गुण छे, ते गुणोने कर्मोए आवरी लीधेल होवाथी जे अशान्ति अनुभवाय छे ते अशान्ति दूर करवाने अनन्त ज्ञानी ए बतावेल चारित्र अने तप एज परम साधन छे। ए परम साधन द्वारा साधना करवाने बदले मूर्ति आदि जड़ पदार्थ मां अरिहंतों नी कल्पना करी तेनी सन्मुख बेसी ए जड़ साधन द्वारा (तेनी मार्फत ) आत्म साधना करी शाश्वत शांति मेलववानी आशा राखवी ते केटले अंशे न्याय संगत छे, ते तटस्थ वृत्ति थी विचार नारा विचारकों सहेजे समजी शके तेम छे।
जैन सिद्धान्तों मां आत्मगुण- ज्ञान दर्शनादिना आवरणो दूर करवाने चारित्र अने तप सिवाय अन्य कोई पण साधन कहेलज नथी ।
श्रमणोपासक श्रावक नी ज्यां ज्यां दिनचर्या सिद्धान्तों मां बतावेल छे त्यां देश विरती चारित्र अने नानाविध तपनीज विधि बतावेल छे कोई पण ठेकाणे प्रतिमाजी नुं पूजन अर्चन के ते सम्बन्धी विधि विधान क्या बतावेल नथी ।
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