Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
| भूमिका सहु कोई समजे एवी एक बात ए छे के जगतना प्राणी मात्र पछी ते मनुष्य होय के इतर होय, मनुष्य मां पण बाल, युवान, वृद्ध, स्त्री, के पुरुष, ज्ञानी के अज्ञानी, सधन के निर्धन गमे ते होय पण सहु कोई बाह्य के आभ्यन्तर शान्ति ने इच्छे छे अने पोत पोतानी समज शक्ति मुजब दरेक यथा शक्य शान्ति मेलववाने बनतो प्रयत्न करे छ। केटला एक नो प्रयत्न समजण पूर्वक नो होय छे, केटलाएक नो ओघ संज्ञावालो होय छे, ज्यारे केटलाएक नो अज्ञानता वालो अने केटलाएक नो दुराग्रह मिश्रित समजण वालो होय छ। एम जुदा जुदा प्रकारे शान्ति माटे प्रयत्न करनारा ओ पोत पोताना प्रयत्न मां मस्त होय छे, तेमां समजण पूर्वक प्रयत्न करनार जरूर शान्ति मेलवी शके छे, अन्ध श्रद्धा वाला पण अमुक अंशे शान्ति प्राप्त करी शके छे, पण एकान्त अज्ञानता वाला के दुराग्रह मिश्रित प्रयत्न करनाराओ पोते साची शान्ति मेलवी शकता नथी, एटलुंज नहिं पण बीजा अनेकने अशान्तिना निमित्त रूप बने छे, कारण के एवाओने शान्ति मेलववानुं साधन जड़ होय छे पुद्गलिक होय छे, अने जड़ वस्तु ने शान्ति शुं?के अशान्ति शुं?
चैतन्य ने शान्ति चैतन्य पासेथीज मली शके पण जड़ पासे थी आध्यात्मिक शान्ति नज मली शके ए सहेजे समजी शकाय तेम छे, आंबानी गोटली मांथीज आंबो मेलवी शकाय, सबीज जुवार मांथीज जुवार प्राप्त करी शकाय, पण पत्थर नी आंबानी गोटली बनावीने के पत्थरना जुवार ना दाणा बनावीने सारामां सारी कराल जमीन मां वाववामां आवे अने उपर वर्षाद वगेरे मनमानता पूरता प्रमाण मां साधनो नो उपयोग थाय तो पण ए मांथी-आंबाना नाममात्र बीजमांथी आंबो के जुवार वगेरे कांई पण नज मेलवी शकाय, एटलुंज नहिं पण ए
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org