Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
[16]
श्री ठाणांगजी सूत्रना चोथे ठाणे श्रमणोपासक ने माटे चार विशामा बतावेल छे तेमां सामान्य व्रत, पच्चक्खाण, सामायिक, पौषध
आदि अने संयम विगेरे कहेल छे पण क्यांय प्रतिमां वंदन-पूजन विश्रान्तिनुं स्थान कहेल नथी तेमज त्रीजे ठाणे त्रण कारणे करी देवने पश्चात्ताप-खेद-थवानुं कहेल छे तेमां (१) छती अनुकूलताए ज्ञानाभ्यास न कर्यो (२) श्रावक पणुं शुद्ध न पाल्युं अने (३) संयमी पणुं शुद्ध न पाल्युं, ए त्रण कारणे देवने खेद थवान कहेल छे, पण क्यांय पहाड़ पर्वतनी यात्रा न करी के प्रतिमादिनुं पूजन न कर्यु तेना माटे खेद थवानुं श्री वीतराग देवे कहेल नथी, कारण के आत्मकल्याणसाधनाराओ माटे ए वस्तु ए प्रवृत्तिनी जरापण जरूर ज्ञानीओओ स्वीकारी नथी, तेमज प्रतिमा पूजन ए निरवद्य क्रिया नथी पण सावध क्रिया छे, एटले ते क्रिया सम्बन्धी सर्वविरति तो कांई पण आदेश के
आज्ञा तो शुं पण उपदेश पण नज करीशके, एटलुंज नहिं पण देश विस्ती श्रावको पण पौषधादि व्रत मां होय त्यारे पण प्रतिमा पूजननी
आज्ञा के सूचना न करी शके, जे क्रिया आत्माना आवरणो दूर करी शके तेवी निरवद्य के जे संसार ने छेदनार होय तेनीज आज्ञा उपदेश के सूचना करी शके, पण जे क्रिया संसार वधारनार होय तेनो आदेश व्रतधारी श्रावक पण नजकरी शके, एवात मूर्ति पूजक बन्धुओ पण स्वीकारे छे। जैन धर्म प्रकाश पुस्तकं ५२ अंक ५ मे पृष्ट १८५ मां प्रश्नोत्तर विभाग मां एक प्रश्नकारे प्रश्न को छे के - - “आपणा घर देराशर नी प्रतिमानी पूजा करी न होय ने भलामण करवी पण रही गई होय तो बीजा कोई ने पूजा करवानो आदेश पौषधमां करी शकाय?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org