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___ महासती श्री राजवरजी भी ठाणा सात से महाराज श्री के पास चौमासा करने के विचार से पधारी । कुल चौदह ठाणे का चौमासा हुआ। जैन पाठशाला की स्थापना हुई। दर्शनार्थ ४०००-५००० मनुष्यों का आगमन हुआ। धर्म तपदान बहुत हुआ और चौमासे की खूब धूमधाम हुई। खासी धर्मप्रभावना हुई । महाराज श्री वहाँ से घोड़नदी पधारे। यहां दो आर्याओं की दीक्षा हुई और अहमदनगर में चौमासा हुआ । पहां से राहोरी होकर आप कोपरगांव आये । यहाँ सुना कि पुनतांबा में आर्याजी रामकंवर जी बहुत बीमार हैं एवं बड़े कष्ट में हैं। अतः आप मुलतानऋषिजी म. को साथ लेकर वहां पधारे और महासतीजी श्री रम्भावरजी की सहायता से उन्हें कोपरगांव ले आये । बीमारी असाध्य देख आर्याजी के भाव संथारा करने के हुए । अतः उन्हें संथारा कराया । ४३ दिन का संधारा हुभा। कोपरगांव वालों ने दर्शनार्थ आने वालों की बहुत सेना की। वहां से महारान श्री मनमाड़ पधारे। यहां चरितनायकजी महाराज ठाणे ५ थे और महासती श्री रम्माङवरजी महाराज ठाणे १३ थीं। कुख ठासे १८ का चौमासा हुआ । लगभग १०००० मनुष्यों का दर्शनार्थ आगमन हुमा । चौमासे की समाप्ति के पश्चात् महाराज श्री धुलिषा पधारे । श्री राजऋषिजी म. सांखों से अपन एवं विहार करने में असमर्थ होने से एवं जैन संघ के आग्रह से चौमासा पलिया में ही हुधा । धर्मदासजी की सम्प्रदाय की श्री मेहतारकरजी का ठाये ४ चौमाला भूलिया ही हुआ। इस बार बगवण .... व्यक्ति दर्शनार्थ आये एवं व पर्ववाद हुमा । फागुन कृष्णा ग्यारह को रावऋषिजी म. का स्वर्षपास होगया । जिनका अन्तिम महोत्सव श्रीमान् हेमराजजी पृथ्वीराजजी की तरफ से बहुत अच्छी तरह मनाया गया। वहां से विहार करके महाराज श्री फागना पथारे ।
वहां से श्रीसंघ का अत्यन्त भाग्रह होने से महाराज श्री धूलिया पधारे। महाराज श्री ने भयंकर गर्मी के दिनों में भी वहां बेले, तेले और चोले किये और पारखे में भी कभी छाछ, कभी गुड़ का पानी और कभी केवल दूध खेकर ही यह क्रम दो महीने सक चालू रक्खा । परिणामतः शरीर में गर्मी का प्रकोप झगया । मेवा सो गये और रक्त की दस्ते होने लगी।