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® ग्रन्थकर्ता का संक्षिप्त जीवनवृत्तान्त
का पालन पोषण हो रहा है, एवं धार्मिक तथा व्यावहारिक विद्यादान दिया. जा रहा है । बृद्ध महासतीजी श्री रामकंवरजी को महाराज श्री के दर्शन की अतीव इच्छा थी, अतः महाराजश्री चीचोंडी होकर मीरी पधारे। यहाँ से कुडगाँव पधारे । यहाँ श्री भीकराजजी चुनिलालजी के घर से भानसहिबडे के गृहस्थ भानूजी की सं० १९८१ माघ सुदी पंचमी को दीक्षा हुई, जिनका नाम श्री कल्याणऋषिजी रखा गया । वहाँ से महाराज श्री मौरी पाए । मीरी में बैंगलोर वाले कुन्दनमलजी मुलतानमलजी बोरा की पुत्री और सिकन्द्राबाद वाले श्री सुगालचन्दजी मकाणा की पत्नी सायरकवरबाई की दीक्षा हुई । वहाँ से महाराज श्री बाम्बोरी आए। वहाँ समाचार प्राप्त हुए कि सालवा से श्री अमीऋषिजी महाराज आदि साधु पधार रहे थे, किन्तु साधु के अडचण होने से रुकना पड़ा । तब मनमाड़ में साधु सम्मेलन करने का विचार रद हुआ। फिर खबर मिली कि श्री अमीऋषिजी म. ने दक्षिण की तरफ विहार किया है। वे वैसाख महीने में दक्षिण पधार गए । सोनई में साधु सानियों का समागम हुआ और सम्प्रदाय की एकता के लिए पूज्य पदवी आदि पदवियों के प्रारोपण का निश्चय किया गया। श्री अमीऋषिजी म. के कथनानुसार साधु साध्वियों को अहमदनगर बुलाया गया । और वहाँ पर यह कार्य करने का निश्चय हुश्रा । १६ साधु और ३६ साध्वियाँ श्री कहानऋषिजी म० की संप्रदाय के एकत्र हुए । अन्य संप्रदाय के भी ५ साधु और ५ साध्वियाँ उपस्थित थीं । कुल ६२ ठाणे एकत्र हुए। किन्तु अभिमान रूपी शत्रु ने कार्य पूर्ण न होने दिया। चरितनायकजी का इस बार का चौमासा ठाणे ४ से घोड़नदी में हुआ । वहाँ भी श्री शांतिनाथ जैन पाठशाला की स्थापना हुई । ३०००-४००० लोग दर्शनार्थ आए और खूब धर्मध्यान हुआ। मीरी (अहमदनगर) के गृहस्थ मुलतानमलजी मेर की दीक्षा सं० १९८२ मार्गशीर्ष पूर्णिमा को हैदराबाद के राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी की तरफ से हुई । वहाँ से महाराज श्री पूना पधारे। वहाँ के श्रावकों ने चौमासे की अत्यन्त आग्रह से विनती की। उसे स्वीकार कर . महाराज चिंचवड बड़गांव पधारे । वहाँ पर मालवे से श्री दौलतऋषिजी महाराज के दो शिष्य चौथऋऋषिजी और रत्नऋषिजी, महासाजश्री के पास रहने को पाए।