Book Title: Jain Tattva Prakash
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Amol Jain Gyanalaya

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ से सेवा करना स्वीकार किया । उपकार का कार्य समझ कर, अनेक वर्षों से अत्यन्त आग्रह से होती हुई विनती को स्वीकार कर, मार्ग में क्षुधा, तृषा श्रादि के अनेक कष्ट सहते हुए श्राप २६७ मील दूर बैंगलोर पधारे । वहाँ जैन साधुमार्गी पोषधशाला, जैन रत्न अमोल पाठशाला और जैन पुस्तकालय यह तीनों संस्थाएँ स्थापित हुई । इरानखाँ और गोस्तखाँ नामक दो कसाइयों ने जीवहिंसा का त्याग किया तथा वहाँ के जज साहब ने पंचेन्द्रियों की हिंसा एवं मांसाहार का त्याग किया। धर्मोमति फंड में १५०००) एवं जीव दया फंड में ४४००) रुपये का सव्यय हुआ । ग्यारह रंगिये, नव रंगिये आदि अन्य उपकार कार्य हुए । उसी समय श्री श्रमीऋषिजी महाराज के समाचार आए कि अब आप विलायत आएँगे या विदेश जाएँगे ? अन्य के यहाँ तो बहुत उजाला कर चुके, अपनी संप्रदाय की क्या हालत है, इस पर भी विचार कीजिए ! उसी प्रकार अहमदनगर से भी श्री रत्लऋषिजी महाराज के समाचार आए कि अन्न शीघ्र ही इबर पाइए। दो मास में भाते हों तो एक ही मास में आइए । ऐसे ज्येष्ठ मुनिवरों की प्राशा शिरोधार्य कर, महाराज श्री ने ठाणा ३ सहित पुनः महाराष्ट्रदेश की ओर विहार किया। पूर्वोक्त अनेक प्रकार के कष्ट सहते हुए भाप रायचूर पधारे । हैदराबाद आदि स्थानों पर खबर पहुँची कि महाराज शीघ्रता से महाराष्ट्र देश में पधार रहे हैं। वह सुनकर राजा बहादुर खाला ज्वालाप्रथादजी आदि अनेक भावक पहपरिवार दर्शनार्थ भाए। उन्होंने महाराज श्री के हैद्रापार पधारने और कर्नाटक प्रदेश में विचरण करने की प्रस्यन्त प्राग्रह से विनती की। किन्तु महाराज श्री ने स्वीकर नहीं की और पादगिरि पधारे। वहाँ रापचूर वाले राजमान कच्छी मोमिन कम्मू सेठ, जो महाराज श्री के बड़े ही प्रेमी थे, पाए और अत्यन्त आग्रह से रायचूर में चौमासा करने की विनती की । विहार करते समय वे रास्ते में बैठ गए किन्तु महाराज श्री नहीं माने और महाराष्ट्र की ओर बढ़ते गए । श्रीमान् सेठ सूरजमलजी भोका पैदल ही महाराज श्री को पहुँचाने के लिए शोलापुर तक पाए । महाराज श्री गुलबर्गे पधारे । यहाँ उनके जाहिर व्याख्यान हुए । चौहान वकील आदि ने यहाँ

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 887