Book Title: Jain Tattva Prakash
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Amol Jain Gyanalaya

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Page 13
________________ क्षेत्र खुल जाएँ और बड़ा उपकार हो । चातुर्मास पूर्ण होते ही महाराज ने हैद्राबाद की तरफ विहार किया । मध्य में सं० १६६२ का चौमासा उन्होंने इगतपुरी में किया । यहां के एवं घोष्टी ग्राम के श्रावकों ने महाराजश्रीकृत 'धर्मतत्त्व संग्रह' ग्रन्थ, की १५०० प्रतियाँ छपाकर अमूल्य वितरित की। चातुर्मास के पश्चात् आप बीजापुर (औरंगाबाद) पधारे। वहाँ के सुश्रावक भीखुजी संचेती ने धर्मतस्यसंग्रह की गुजराती भाषान्तर की १२०० प्रतियाँ छपा कर अमून्य भेट दीं । यहाँ से औरंगावाद जालना होते हुए एवं क्षुधा, तृषा, शीतोष्णादि मार्ग के अनेक कठोर परिषह सहते हुए संवत् १९६३ चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को पाप हैद्राबाद (अलवाल) पधारे । महाराज श्री को चातुर्मास करने के लिए चार कमान में नव कोटी का मकाच, लाला नेतराम 'मी रामनारायणजी ने दिया । यहाँ रह कर महाराज श्री ने स्याद्वाद शैली से युक्त, विभिन्न भाषाओं का उपयोग करते हुए एवं अकाट्य तर्क युक्त विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान दिए । परिणामतः अनेकों अजैन प्रभावित होकर जैन बने । राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी जैसे जैन स्तम्भ दानवीर, महाप्रभाविक श्रावक रत्न बने एवं अनेक शास्त्रादि के ज्ञाता, दुष्कर तपःकृता, सौभाग्यावस्था में चारों स्कन्धों की पालक गुलाबबाई जैसी श्राविकारत्न बनी । ये दोनों रत्न अत्यन्त प्रभावशाली हुए। ___तपस्वीराजजी श्री केवलऋषि महाराज के शिष्य श्री सुखाऋषिजी. आश्विन में अस्वस्थ हुए एवं फाल्गुन में स्वर्गस्थ बन गए । इतने में ग्रीम ऋतु आ गई और विहार नहीं हो सका । अतः दूसरा चौमासा भी लालाजी ने अत्यन्त आग्रह से वहीं कराया। इस चौमासे में तपस्वीराज बीमार हो गये और इस कारण लगातार नौ वर्ष तक वहीं रहना हुआ । इस समय में श्रीकेवलऋषिजी महाराज के प्रयास से लाखों पंचेन्द्रियों को अभय प्राप्त हुआ एवं चरितनायकजी ने अनेकों ग्रन्थ रचे । लालाजी आदि प्रमुख श्रावकों ने उन्हें छपवा कर अमूल्य बँटवाया । सं० १६६१, श्रावण वदी १३ मंगलवार को तपस्वीराज महाराज स्वर्गस्थ हुए। चरितनायकजी महाराज के आदर्श वैराग्यमय जीवन एवं प्रभावशाली उपदेश से प्रभावित होकर पाँच व्यक्ति दीक्षा लेने के लिए प्रस्तुत हुए, उनमें से तीन को योग्य जान कर लालाजी

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