Book Title: Jain Tattva Prakash
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Amol Jain Gyanalaya

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Page 12
________________ के शिष्य होने लगे। किन्तु उन्होंने आपको शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया। तब उन्हें पूज्यश्री खूबाऋषिजी के समीप ले जाया गया। और उन्होंने अपने ज्येष्ठ शिष्य आर्यमुनि श्री चेनाऋषिजी महाराज का शिष्य बनाया। स्वल्प काल में ही गुरुवर्य एवं पूज्य श्रीजी का स्वर्गवास हो जाने पर वे ३ वर्ष तक श्री केवलऋषिजी म. के साथ विचरण करते रहे । फिर तपस्वीजी के एकल विहारी हो जाने पर श्री अमोलकऋषिजी दो वर्ष तक भैरुऋषिजी म० के साथ रहे। संवत् १९४८ के फाल्गुण में ओसवाल जातीय श्री पन्नालालजी ने १८ वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण की । श्री अमोलकऋषिजी के शिष्य बने। उस समय कविवर श्री कृपारामजी महाराज के शिष्य रूपचंदजी महाराज गुरुवियोग से दुःखी हो रहे थे। उन्हें सान्त्वना देने के लिये आपने पन्नाऋषिजी को उन्हें समर्पित किया। यह आपकी महान् उदारता थी। संवत् १९४८ मार्गशिर में आप श्री रत्नऋषिजी महाराज के सहचारी बने । उन्होंने आपको योग्य जान कर पूर्ण परिश्रम पूर्वक शास्त्रा. भ्यास कराया। संवत् १६५६ के फाल्गुन मास में श्रोसवाल संचेती जाति के श्री मोतीऋषिजी चरितनायकजी के शिष्य बने। उनका देहान्त संवत् १९६१ के आश्विन में बम्बई में हुआ। सं० १९६० में घोड़नदी ग्राम में चरितनायकजी ने चातुर्मास किया एवं वहीं पर आषाढ शुक्ला 8 को इस ग्रंथ का प्रारम्भ एवं आश्विन शुक्ला दशमी, दशहरा के दिन समाप्ति की। चौमासे के पूर्ण होते ही श्री केवलऋषिजी महाराज की वृद्धावस्था देखकर बे उनकी सेवा में रहे । संवत् १९६६ का चातुर्मास बम्बई संघ के आग्रह से हनुमान गली में किया । उसी समय यहाँ पर 'रत्न चिन्तामणि जैन मित्र मंडल' की स्थापना हुई । एक जैनशाला खुली और इस मंडल की ओर से चरितनायक द्वारा रचित 'जैनामूल्यसुधा' नामकी पद्यबद्ध पुस्तक प्रकाशित की गई। . दक्षिण हैद्राबाद निवासी साधुमार्गी श्रावक श्री पन्नालालजी कीमती कार्यवश बंबई पाए । उन्होंने निवेदन किया कि हैद्राबाद में साधुमागियों के घर तो बहुत हैं किन्तु साधुदर्शन के प्रभाव से बे अन्यमतावलम्बी हो रहे हैं। यदि आप जैसे महात्मा उधर पधारने की कृपा करें तो एक नया

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