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ग्रन्थकर्ता का संक्षिप्त जीवनवृत्तान्त
मेड़ता (मारवाड़) निवासी श्री कस्तूरचन्दजी कॉस्टिया ओसवाल कुलोत्पन्न थे। वे व्यापार के लिए मारवाड़ छोड़ कर मालवा देश के प्राष्टा (भोपाल) शहर में रहने लगे थे। दैवयोग से सेठजी की, उनके बड़े पुत्र की छोटे पुत्र की एवं बीच के पुत्र की पत्नी की मृत्यु हो जाने से सेठजी की पत्नी श्रीमती जवरीबाई को वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने अपने दो पुत्रों को छोड़ कर साधुमार्गी संप्रदाय में दीक्षा ग्रहण की । वे १८ वर्षे तक संयम पाल कर स्वर्गस्थ हुई । अपनी माता, पिता, पत्नी, बड़े और छोटे भाई के वियोग से उदास और शोकाकुल होकर कस्तूरचंदजी के द्वितीय पुत्र केवलचंदजी भोपाल में आकर रहने लगे । वहाँ वे पितृधर्मानुसार पंच प्रतिक्रमण नवस्मरण आदि कंठस्थ कर जिनपूजादि क्रिया करने लगे। उन दिनों भोपाल में निरंतर एकांतर उपवास करने वाले, एक ही चद्दर रखने वाले, स्वल्पभाषी कुंवरजी ऋषिजी महाराज का आगमन हुआ। उनका उपदेश सुनने के लिए श्री फूलचन्दजी धाड़ीवाल केवलचंदजी को जबर्दस्ती ले गए। उस समय सूयगडांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन के चतुर्थ उद्देशक की दसवीं गाथा का व्याख्यान चल रहा था। उससे प्रभावित हो सद्धर्म प्राप्त करने के इच्छुक बन कर केवलचंदजी प्रतिदिन व्याख्यान श्रवण करने आने लगे। धीरे धीरे उन्होंने प्रतिक्रमण, पच्चीस बोल का थोकड़ा आदि कंठस्थ कर लिया। उनके दीक्षा लेने के भाव उत्पन्न हो गए । किन्तु भोगावली कर्मों का अभी अन्त नहीं हुआ था, अतः उनके स्वजनों ने जबर्दस्ती ही उनका विवाह खेड़ी ग्राम निवासी श्री छोटमलजी टाँटिया की पुत्री श्री दुलासाबाई से कर दिया । किन्तु दुर्भाग्यवश वह भी दो पुत्रों को छोड़कर स्वर्गवासिनी हुई। पुनः पुत्रों के लालन पालन के लिए विवाह करने के