Book Title: Jain Tark Bhasha
Author(s): Ishwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
Publisher: Girish H Bhansali

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Page 13
________________ * प्रकाशक का निवेदन कोई भी काय कारणों के समुदाय के बिना सिद्ध नहीं होता । कोई कारण मुख्य होता है और कोई कारण सहकारी होता है कार्य की सिद्धि के लिये दोनों प्रकार के कारणों का होना अनिवार्य रूप से आवश्यक है। टीकाकार पंडितप्रवर श्री ईश्वरचंद्र जी शर्मा ने अति परिश्रम से टीका की रचना की है। उनकी रचना में बम्बई- भूलेश्वर स्थित शेठ मोतीशा लालबाग जैन चेरोटीझ के ट्रस्टी गण और वहां के ज्ञानभंडार के कार्यकर्ताओं ने अनुपम सहायता की है । इसलिये हम उनके आभारी हैं। प्रकाशन का कार्य बम्बई- वडाला जैनसंघ के अपूर्व सहकार से हो सका है अतः हम उनका भी आभार मानते हैं। टीकाकारने टीका तो की ही है, परन्तु आरंभिक निवेदन भी लिख दिया है । इसके लिये हम टीकाकार का अनुग्रह मानते हैं । समय पर प्रस्तावना लिख देने के लिये हम पूज्यपाद विद्वद्वर्थ आचार्यभगवंत श्रीमद् विजय मुक्तिचंद्रसूरीश्वरजी महाराज के चरणों में कोटिशः वन्दना करते हैं। पूज्यपाद स्वाध्यायरक्त आचार्यदेव श्रीमद् विजय जितमृगाँ कसूरीश्वरजी महाराज के शिष्यरत्नों पूज्य मुनिराजश्री रत्नभूषण विजयजी महाराज और पूज्यमुनिराज श्री हेमभूषण विजयजी महाराज ने अत्यंत उपयोग के साथ संपादन और संशोधन का कार्य किया है इसके लिये हम दोनों सुनिवरों की अनेक बार वंदना करते हैं ।

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