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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
स्थिति मालूम होने के साधन उस जमाने में मौजूत नहीं थे ( जिस जमाने में ये सूत्र रचे गये ) और न इतनी लम्बी यात्रा के यानी सारी पृथ्वी-भ्रमण कर आ सकने के साधन मौजूद थे । न तार और बेतार था और न रेडियो (Radio) वगैरा था कि पूछ-ताछ से पता लगाया जा सकता। ऐसी सूरत में बूजबुजागरजी की तरह सवाल का जवाब देना आवश्यक समझ कर ऐसी ऐसी बेबुनियादी कल्पनाएँ की गई हों तो आश्चर्य क्या है ?
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सूर्य-प्रज्ञप्ति के आठवें प्राभृत में लिखा है कि भरत क्षेत्र का सूर्य अस्त होकर महाविदेह क्षेत्र में उदय होता है । जम्बूद्वीप में दो सूर्य और दो चन्द्र भ्रमण करते हुये माने गये हैं । जो सूर्य भरत क्षेत्र में आज अस्त होकर महाविदेह जाकर उदय हुआ है, वह सूर्य वापिस तीसरे दिन भरत क्षेत्र में आकर उदय होगा । दोनों सूर्यों के उदय होने का क्रम एक दिन अन्तर से बताया गया है । किन्तु हम इस पृथ्वी के बासिन्दे केवल एक ही सूर्य को देख रहे हैं। आप करीब १०४० मील प्रति घन्टे रफ्तार से चलने वाले हवाई जहाज को मध्यान्ह के वक्त सूर्य के साथ रवाना कर दीजिये। जहां से वह रवाना हुआ था, उसी जगह और उसी वक्त दूसरे दिन उसी सूर्य महाराज को मस्तक पर लिये हुये सही सलामत पहुंच जायगा ; दूसरे सूर्य महाराज का कहीं दर्शन तक न होगा । अगर हम अमेरिका को महाविदेह क्षेत्र मान लें तो सूर्य का भरत क्षेत्र में अस्त होकर
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