________________
'१६८
जैन शास्त्रों को असंगत बातें ! व्यक्तियों के हृदय में धर्म के प्रति विश्वास बना रह सकता है तो प्रत्यक्ष में असत्य प्रमाणित होने वाली बातों को निकाल देने में लोगों के विश्वास उठ जानेकी धारणा बनाये रखना केवल व्यर्थ का भय है। सत्य ही सर्वदा सत्य बने रह सकता है असत्य को सत्य बनाये रखना तभी तक सम्भव है जबतक लोगों में ज्ञान विज्ञान का अभाव है। ___ शास्त्रों की इस समय बड़ी बिकट दशा हो रही है। श्वेताम्बर जैन कहलाने वाले मूर्तिपूजक स्थानकवासी और तेरापंथी तीनों सम्प्रदाय आगम सूत्रों में से ३२ सूत्रों को अक्षर अक्षर सत्य मान रहे हैं । सब कोई अपने अपने मतकी बात सिद्ध करते हुये इन्हीं सूत्रों के आधार पर एक दूसरे की बात का खन्डन करते हैं और एक दूसरे को अज्ञानी एवम् मिथ्यात्वी बतला रहे हैं। मूर्तिपूजक इन सूत्रों से मूर्तिपूजा करना आत्म कल्याण का साधन सिद्ध करते हैं और स्थानकवासी एवम् तेरापंथी इस विषय में दोनों एक तरफ रहकर मूर्तिपूजासे आत्मा का कल्याण तो दूर रहा एकान्त पाप होकर आत्मा पाप से भारी होनेका कह रहे हैं। दान और दया के विषय में स्थानकवासी तथा मूर्तिपूजक दोनों एक होकर पुन्य और धर्म होनेका कथन कर रहे हैं और तेरापंथी इन दोनों के बताये हुए दान-दया से होने वाले पुन्य धर्म होने का खन्डन करके एकान्त पाप होने का कथन कर रहे हैं। आश्चर्य है कि जिन सूत्रों के आधार पर एक सम्प्रदाय वाले किसी के द्वारा मारे जाने वाले प्राणीको बचाने में धर्म मान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org