Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 231
________________ [श्री घनश्यामदासजी बिड़ला विरचित 'बिखरे-विचार' से मार्च, १६३३ ] शास्त्र भी और अक्ल भो हिन्दू-समाज में कोई सुधार की बात चली कि शास्त्र मोर्चे पर आ डटे। यहो दशा अस्पृश्यता-निवारण आंदोलन में भी हुई है। शास्त्रोंके पन्नों की इस समय काफ़ी उलट-पुलट है यहाँ तक कि दोनों पक्षवाले शास्त्रों के अवतरण दे रहे हैं। गांधीजी ने भी पंडितोका आह्वान किया और उनसे शास्त्रोंकी व्यवस्था पूछी। पंडितो ने भी व्यवस्था सुनायो और श्री भगवान्दास जी जो शास्त्रोंके धुरन्धर विद्वान् हैं, इन व्यवस्थाओंको काशीके 'आज' पत्र के साथ 'क्रोड़-पत्र' के रूपमें प्रकाशित कर रहे हैं, जो सचमुच पढने और मनन करने योग्य शास्त्रों की इस छान-बीनका यह प्रयत्न इस तरहसे मुबारक है क्योंकि कम-से-कम इससे पुराने आर्य-इतिहास का कुछ पता तो चल ही जाता है। किन्तु जो बातें सीधी-सादी बुद्धि द्वारा समझ में आ सकती हों, उसमें ख्वाहमख्वाह शास्त्र को आवश्यकता से अधिक महत्व देना खतरनाक भी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 229 230 231 232 233 234 235 236