Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 233
________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! २२५ उपनिषद् बने, यहाँ तक कि अल्लोनिषद भी बन गया। ज्योंज्यों बुद्धिका विकाश बढ़ा शास्त्र साहित्य भी बढ़ता गया। शास्त्रके लिखने वालों ने देश-कालको सामने रखकर कुछ अच्छी-अच्छी बातें लिखीं, उन्हीं शास्त्रोंमें पीछेसे ऋषियों ने देश काल का परिवत्तन देखकर फिर कुछ और जोड़ दिया। इसी तरह कुछ लोगोंने अपने स्वार्थ की बेसिर-पैर की बेहूदा बातें भी जा कहीं। जैसी जिस समय आवश्यकता हुई उसी तरह से यह जोड़-तोड़ भी बढ़ता गया। आर्य लोगोंके रहनसहन, आचार-विचार और शास्त्रोंका यही इतिहास है। इसलिये परस्पर विरोधी बातों का भी शास्त्रोंमें होना स्वाभाविक है। हिन्दू शास्त्रों की महत्ता ही यह है कि विचारस्वातन्त्र्य को कभी आसन-च्युत नहीं होने दिया । यही हमारी खूबी और ताकत रही है। इसीके बल पर हम आजतक जिन्दा हैं। हम निभा ले जाये तो हमारी यह खूबी ही हमारी जिन्दगी का बीमा होगी। ___आर्य शास्त्रोंमें काफी कुन्दन है। इतना है कि अन्य किसी मजहबी ग्रन्थमें नहीं ; किन्तु आम के साथ गुठली भी है, रेशे भी हैं, इसलिये विवेक को आवश्यकता तो है ही। जो सर्वमान्य शास्त्र माने जाते हैं उनमें भी ऐसी बातों की कमी नहीं हैं, जो बुद्धि के प्रतिकूल और अप्रामाणिक और इसलिये अमान्य हैं। भागवतमें लिखे गये भूगोलको क्या हम मानेंगे ? पारद और गंधक की उत्पत्ति की शिक्षा आचार्य राय से लेना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236