Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

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Page 235
________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! वेदों का वह भी एक भाग है । इस तरह हमें अपने शास्त्र की कल्पना को भी विस्तृत बनाना होगा और अन्त में इस नतीजे पर पहुंचना होगा कि जितना भी ज्ञान समूह है वह सभी शास्त्र है, और जो सच्चे ज्ञान से भिन्न है, वह चाहे संस्कृत भाषा में हो चाहे अरबी या अंग्रेजी में, सारा अशास्त्र है । हिन्दू समाज में वर्षोंसे अनेक विभाग बन गये हैं। अदृश्यता है, अस्पृश्यता है, अग्राह्यजलता है, असहभोजिता है और अवैवाहिकता है । इनमें अन्तिम दो विभागों से हम किसी को चोट नहीं पहुँचाते। हम किसी के यहाँ खाने को नहीं जाते, इसमें हम किसी का अपमान नहीं करते । न विवाहशादी ही ऐसी चीज है कि किसी से सम्बन्ध करने से इनकार करने में हम किसी के साथ अन्याय करते हों । इसलिए असहभोजिता और अवैवाहिकता कोई पाप नहीं ; किन्तु किसी मनुष्य के दर्शन - मात्र को पापमय मानना ( अदृश्यता ) जैसे कि मद्रास प्रान्त में एकाध जगह प्रचलित है, या किसी के स्पर्श मात्र को पातक समझना ( अस्पृश्यता ) ये दोनों ही अभिमान-मूलक पापमय वृत्तियाँ है, जो हिन्दू धर्म की नाशक हैं । २२७ शास्त्र कैसे कह सकता है कि हमारा यह अन्याय धर्म हो सकता है ? इस सम्बन्ध में हमारी अक्ल की गवाही क्या काफी नहीं है ? जो काम समाज की भलाई का हो, सदय हो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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