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२२२ जैन शास्त्रों को असंगत बातें ! आप किस किसका विश्वास करते फिरोगे १ विना तर्कका सहारा लिये आपकी गुजर नहीं है इसलिये पंडितप्रवर टोडरमल्ल जीने लिखा है--"कोऊ सत्यार्थ पदनिके समूहरूप जैनशास्त्रनिविष असत्यार्थपद मिलावै परन्तु जिन शास्त्रके पदनिविषै तो कषाय मिटावने का वा लौकिककार्य घटावनेका प्रयोजन है ।
और उस पापीने असत्यार्थ पद मिलाए हैं तिनिविषै कषाय पोषनेका वा लौकिक कार्य साधनेका प्रयोजन है ऐसे प्रयोजन मिलता नाहीं। तात परीक्षाकरि ज्ञानी ठिगावते भी नाहीं। कोई मूर्ख होय सो ही जैनशास्त्र नामकरि ठिगावै है।" इससे पाठक समझ गये होंगे कि जैनशास्त्रके नामसे सतर्क रहने की कितनी जरूरत है टोडरमलजीने प्रयोजनके मिलानसे परीक्षा करने पर जोर दिया है, जिस परीक्षाके नमूने इसी लेखमें दिये गये हैं। यदि पाठक इसी तरहकी परीक्षा करेंगे, शास्त्रसे बढ़कर तर्कको मानगे तो सच्च जैनत्वको समझ सकेंगे। अन्त में हम तीन वाक्य देते हैं जिसे जिज्ञासु महानुभाव सदा स्मरण में रक्खें:-- ___"जो तर्कयुक्त है वह सब शास्त्र है। परन्तु जो शास्त्र नाम से प्रचलित है वह सब, तर्क नहीं है।" ___“जो सत्य है वह सब धर्म है। जो धर्म के नाम पर प्रचलित है वह सब, सत्य नहीं है ।" ___ "धर्म, हमारे अर्थात् हमारे कल्याण के लिये है। हम या हमारा कल्याण धर्म के लिये नहीं है।"
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