Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

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Page 229
________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! न मुझे महावीर में पक्षपात है न कपिलादिकमें द्वेष ; जिसका वचन युक्तियुक्त हो उसी का ग्रहण करना चाहिए । शास्त्रोंकी दुहाई देने वाला कोई धम, ऐसी गर्जना कर है ? यदि नहीं तो क्या ऐसो गर्जना करने वाला धर्म अपने नाम पर प्रचलित हुए युक्तिविरुद्ध बचनोंको मनवाने की धृष्टता कर सकता है? यदि नहीं, तो हमें शास्त्रोंकी चोटी, तर्कके हाथ में देदेना चाहिये । शास्त्रोंको जजका स्थान नहीं किन्तु गवाहका स्थान देना चाहिए, और प्रत्येक बातका विचार करके निर्णय करना चाहिए । रविषेणाचार्य कहते हैं - जो जड़बुद्धि मनुष्य हैं वे नीच, धर्मशब्द के नाम पर अधर्म का ही सेवन करते हैं । धर्मशब्द मात्रेण बहुशः प्राणिनोऽधमाः । अधर्ममेव सेवते विचारजड़ चेतसः || पद्मपुराण ६ - २७८ । धर्म के विषय में सदा सतर्क रहने की ज़रूरत है। तर्कशून्य हुए कि गिरे। क्योंकि धर्म के नाम पर और जैनधर्मके नाम पर भी इतने जाल और गड्ढे तैयार किये गये हैं कि तर्क के बिना उनसे बचना असम्भव है । जिन शास्त्रों का सहारा लिया जाता है वे तो खुद जाल और गड्ढ़ेका काम करते हैं । उन्हीं से तो बचना है । भगवान् महावीर के पीछे अनेक गण, गच्छ, संघ हो गये; समय समय पर जिसको जो कुछ ऊँचा या जिसने जिसमें अपना स्वार्थ देखा वैसा ही लिख मारा। अब Jain Education International २२१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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