Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

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Page 204
________________ १६६ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! सुजानगढ़ वापिस आया । उस समय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सम्प्रदाय के आचार्य महाराज सुजानगढ़ बिराजते थे । मैने फिर श्री जी महाराज से अर्ज की कि बार्त्तालाप के लिये अब समय निकालने की कृपा करावें; परन्तु श्री जी ने उस समय भी यही फरमाया कि आजकल समय कम है । फिर कुछ दिन पश्चात् श्री जी महाराज का सुजानगढ़ से बिहार हो गया । मुझे आशा है कि किसी समय श्री जी महाराज अवश्य समय निकाल कर बार्त्तालाप करने की कृपा करेंगे और जैन शास्त्रों में पाई जाने वाली असत्य बातों का या तो किसी प्रकार से समाधान करावेंगे अथवा शास्त्रों में परिवर्तन करने की कोई योजना करेंगे। स्थानकवासी सम्प्रदायके आचार्य महाराज श्री गणेशीलालजी महाराज साहब जो बड़े विद्वान एवम् जैनशास्त्रों के ज्ञाता हैं और स्वभाव के बड़े सरल हैं उनसे इस विषय में कई दफा बातचीत हुई है । आपका फरमाना यह रहा कि शास्त्रों में परिवर्तन करना इस समय असम्भव बात है । कारण इस काम के लिये सर्वप्रथम श्वेताम्बर जैनों के तीनों सम्प्रदायों को सरल चित्त से एक राय होकर सम्मिलित प्रयत्न करने की आवश्यकता है जिसका होना असम्भव प्रतीत होता है । श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के समय में मथुरा और वल्लभपुर में लगातार बारह बर्ष तक जिस प्रकार शास्त्रों के संकलन करने में भिन्न भिन्न स्थानों से भगवान बीरके शिष्य मुनिराज आआकर अपनी अपनी याददास्त के अनुसार शास्त्रों के निर्माण में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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