Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 205
________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! १६७ सहयोग दिया था उसी प्रकार इस समय भी भगवान बीरके शिष्य कहलाने वालों को इन शास्त्रों के विषय में अपने अपने अनुभव तथा अपने अपने विचार और परिवर्तन हो सकने बाली बातों के लिये अपने अपने सुझाव रखते हुवे सहयोग देकर इस कार्य को सफल करनेका प्रयास करना चाहिये । परन्तु इस समय तो ऐसी विषम अवस्था हो रही है कि व्यर्थके बादविवाद में समय का दुरुपयोग किया जा रहा है। जैनाचार्यों की मेरे साथ हुई उपर की बार्त्तालाप से यह स्पष्ट अनुमान हो रहा है कि न तो शास्त्रों में प्रतीत होनेवाली असत्य बातों को हटा सकने का किसी में साहस है और न शास्त्रों को सत्य प्रमाणित कर सकने का प्रयत्न । वास्तव में जो बात असत्य हो, जबरदस्ती उसको सत्य प्रमाणित करना तो असम्भव भी है और अनुचित भी ; परन्तु उसको हटा सकने में आना-कानी करना व्यर्थ की कमजोरी दिखाना है । बहमसे यह एक धारण बनाली गई है कि शास्त्रों की असत्य बातों को यदि असत्य स्वीकार कर लिया गया तो शेषकी बातों के लिये लोगों के हृदय में विश्वास जमाये रखना दूभर हो जायगा । परन्तु यह आशंका केवल आशंका मात्र है। लोंकाजी भावक के पहिले क्रमवार ४५ आगम सूत्रों की मान्यता थी परन्तु लोंकाजी ने उनमें से १३ आगम सूत्रों को बिना किसी पुष्ट प्रमाण के अमान्य कर दिया । लोंकाजी जैसे श्रावक के कथन से जब समूचे के समूचे १३ आगम अमान्य ठहराये जाकर लाखों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236