Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

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Page 209
________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! २०१ रखी है और सब एक होकर द्वारा इनका निर्णय करावें । क्या कारण है कि समाज में इतनी जबरदस्त विषमता फैलानेवाले विषयों के लिये तो हम लोगों ने खामोशी अख्तियार कर भूतकाल में बीती हुई व्यर्थ की बातों के लिवे आकाश पाताल के कुलावे मिलाने लगते हैं। थोड़े ही दिनों की बात है, श्री धर्मानन्द कोसाम्बी ने किसी पुस्तक में यह लिख दिया था कि जैन शास्त्रों में साधु के लिये मांस आहार लाने का कथन है। बस इसी पर सब मिलकर कोसाम्बी जी को कोसने लगे। अभी तक भी इस विषय पर लेख पर लेख निकलने का तांता जारी है। शास्त्रों में जहां मांस शब्द आया है उसको येन-केन-प्रकारेण वनस्पति सिद्ध करने की धींगामस्ती की जा रही है। मांस से यदि आपत्ति है तो उन स्थानों से मांस शब्द को ही क्यों नहीं हटा दिया जाता न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी' | जिन जिन स्थानो में असत्य, अस्वाभाविक, असम्भव और परस्पर बिरोधी बचन जैन शास्त्रों में आये हैं उन्हें हटा देना और जिन जिन विधि-निषेधों से मानव समाज की व्यवस्था बिगड़ती है उन्हे निकाल बाहिर करना परम आवश्यक है । इनके हटा देने और निकाल बाहिर करने से न तो धर्म की बातों पर से लोगों का विश्वास ही उठ जायगा और न किसी प्रकार की हानि ही होगी बल्कि जैन शास्त्रों का संशोधन हो कर वे शुद्ध हो जायँगे । इसलिये सारे जैन शासन के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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