Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

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Page 226
________________ २१८ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! कोई अन्तर नहीं है। सुन्दर, सुशिक्षित सुशील स्त्री का चुनाव करना इसलिये ठीक होगा कि उससे रागपरिणति को सीमित रखने में सुविधा होगी, अर्थात् उसके उच्छृखल होने का कम डर रहेगा। खैर, अब यदि कोई यह कहे कि “कुमारी और सवर्णा अर्थात् सजातीयाके साथ विवाह करना चाहिये, बिधवा या असवर्णा आदि के साथ विवाह करने से पाप होगा," तो इसका निर्णय करने के लिये पहिले हमें शास्त्र न टटोलना चाहिए बल्कि पहिले विचारना चाहिये कि विधवा और असवर्णा के साथ विवाह करनेसे विवाहके मूल उद्देश में क्या कुछ बाधा आती है ? विवाह का मूल उद्देश है संसार भर की स्त्रियों से अपनी विशिष्ट राग परिणति को हटाकर किसी एक जगह सीमित कर देना। यह बात तो विधवाविवाह और असवर्णविवाह में उसी तरह होती है जैसीकि कुमारी विवाह और सवर्णविवाहमें। इससे मालूम हुआ कि इससे मूल उद्देश में कुछ बाधा नहीं आती। अब इस निश्चयके विपरीत जिस जिस ग्रंथ में लिखा हो, समझलो कि वे सब कुशास्त्र हैं, अर्थात् उनका यह वक्तव्य धर्मविरुद्ध है। इसपर कोई कहेगा कि अगर ऐसा है तो "अभक्ष्य भक्षण भी जायज़ कहलायगा क्योंकि इससे मूल उद्देश बुभुक्षापूर्ति तो हो जाती है, तथा इसी तरह अन्य निकृष्ट वस्तुएँ भी ग्राह्य हो जावेगी"। यह कहना नहीं, क्योंकि अभक्ष्यभक्षण, भूख बुझाने का काम करता है इसलिये जो बुभुक्षापूर्ति नामक धर्म के पालन करने वाले हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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