Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 224
________________ २१६ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! 1 सिद्धान्त के अनुकूल उतरें तब तो ठीक, नहीं तो उन्हें अधर्म समझना चाहिये। जैसे जैनधर्मके चारित्रके विवेचनको लीजिये । जैन धर्म के अनुसार रागद्वेषका दूर करना चारित्र है इसलिये व्यवहार में उन क्रियाओंको भी चारित्र कहते हैं जिनसे रागद्वेषकी हानि होती है । हिंसा न करने से, झूठ न बोलने से, चोरी न करने से, ब्रह्मचर्य से, परिग्रहके त्यागसे, कषायें कम होती हैं इसलिये ये पाँचों चारित्र कहे जाते हैं। इन पाँचों में से अगर किसी के भीतर कोई जटिल समस्या उत्पन्न होती है तो उसका निर्णय कषाय-हानि रूप कसौटी से कर लेना चाहिये । शास्त्रों में त्रिकालवर्ती अनन्त घटनाओंका और अनन्त आचारोंका विवेचन तो हो नहीं सकता, इसलिये अगर कोई नयी पुरानी समस्या हमारे साम्हने खड़ी हो तो उसका निर्णय मूल शिद्धान्त के अनुसार करना चाहिये ; शास्त्रों के ऊपर न छोड़ना चाहिये । कल्पना करलो, कोई आचार कषायों का कम करने वाला है, लेकिन शास्त्रोंमें उसका उल्लेख नहीं है अथवा अस्पष्ट उल्लेख है, अथवा किसी लेखकने उसकी विधि और किसीने विरोध कर दिया है तो ऐसी हालत में उस आचार के विरोधी शास्त्रोंको दृढ़ता के साथ असत्य कह देना चाहिये, क्योंकि शास्त्रों में लिखे जाने से सत्य की महत्ता नहीं है किन्तु सत्य के होने से शास्त्रों की महत्ता है । जो निःसत्य है वह निःसत्व है । इसी तरह अगर कोई आचारनियम कषायों का बढ़ाने वाला है या शुभ से हटाकर अशुभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236