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जैन शास्त्रों की असंगत बातें !
माननेवाले परस्पर इतना भिन्न २ कथन करते कि एक जिसको धर्म कहता दूसरा उसीको एकान्त पाप कहता ।
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इस प्रकार की स्थितिका श्रावक समाज पर बहुत बुरा और कटु असर पड़ रहा है। मूर्तिपूजक और स्थानकवासी श्रावक तेरापंथी श्रावक से एक बिरादरी होने पर भी साख-सगपन करने में परहेज करते हैं और तेरापंथी श्रावक स्थानकवासी और मूर्तिपूजक श्रावक से साख- सागपण करने में परहेज करते हैं । एक दूसरेके सामाजिक सम्बन्धों में पूरी कटुता आती जा रही है । परन्तु न जाने श्रावक सामाज की बुद्धि और बिवेक को क्या हो गया है कि उसे यह भी नहीं सूझती कि कमसे कम अपने सामाजिक हितों की रक्षाका तो विचार रखें । श्रावक समाज को चाहिये कि मुनि समाज से प्रार्थना करे कि आप तीनों सम्प्रदाय के मुनि ३२ सूत्रों को एक सा अक्षर अक्षर सत्य मानते हैं और इन बसों के आधार पर एक जिस कार्य के करने में धर्म बताता है तो दूसरा उसीमें एकान्त पाप बता रहा है । हमारे लिये पाप धर्मका मार्ग दिखाने वाले आपलोग हैं अतः आप लोगों को चाहिये कि सब एकत्रित होकर विवादास्पद विषयों के लिये अच्छी तरह शास्त्रार्थ करके निर्णय करें और एक राय हो जायें । इसपर भी यदि वे ऐसा करना नहीं चाहते
तो हमरा कर्त्तव्य है कि हम इन सूत्रोंके विवादास्पद विषयों का निर्णय कराने के लिये एक संस्था स्थापित करें और उस संस्थाके द्वारा योजना करके जैन कहलाने वाले बड़े बड़े विद्वानों
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