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जैन शास्त्रों को असंगत बातें !
पूज्यजी महाराज भी पढ़ते हैं। वातावरण में कुछ हलचल-सी मच जाती है । उस दिन मेरे सामने हो 'तरुण' की बातें चल रही थीं। एक अनन्य और विश्वासपात्र श्रावक अर्ज कर रहे थे कि महाराज, आप शिक्षा-प्रचार में पाप बता रहे हैं मगर शिक्षा का सम्बंध अब आजीविका से जुड़ा हुआ है। केवल आपके पाप बताने से लोग पढ़ने से रुक नहीं जायेंगे। लोग जैसे जैसे शिक्षित होंगे, उनमें तर्क और ज्ञान बढ़ेगा। ज्ञान बढ़ने से प्रत्यक्ष और गणित से असत्य साबित होनेवाली बातों की अक्षर अक्षर सत्यता की मोहर (छाप ) टूटे बगैर कैसे रहेगी ? महाराज ने गम्भीर होकर उत्तर दिया कि 'यह बिचारने की बात हो रही है।' सम्पादकोंजी, मुझे तो अब कुछ न कुछ समाज-सुधार की तरफ रवैया बदलता प्रतीत हो रहा है-चाहे उपदेश की शैली बदल कर, चाहे श्रावकों द्वारा समाज-सुधार के लिये कोई संघ या सभा कायम होकर। और अब भी कुछ न हो तो महान् विनाश निकट ही है। पर मुझे विश्वास होने लगा है कि आप के 'तरुण' की उछल-कूद खाली नहीं जाने की। ___ कुछ दिन पहिले मैं कार्य वशात् सुजानगढ़ गया था। सिंघीजी से भी मिला । बड़े सज्जन प्रतीत होते थे। मैंने कहा "आपके 'तरुण' के लेखोंमें शास्त्रों की बातों को असत्य प्रमाणित करने की सामग्री तो लाजवाब है, मगर आप सर्वज्ञता के सब्द के साथ कहीं कहीं मजाक से पेश आ रहे हैं। यह बात मेरे हृदय में खटकती है। वे कहने लगे-क्या आप यह
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