Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

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Page 192
________________ १८४ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! के परिणाम (भाव) । परन्तु इसका कथन करने में जैन शास्त्रों ने अन्य शास्त्रों की तरह इसकी प्रधानता का स्पष्ट दिग्दर्शन नहीं किया। उसी का यह परिणाम हो रहा है कि यथार्थ विवेचना के पश्चात् निस्वार्थ बुद्धि ( सेवा भाव ) पूर्वक किये हुए संसारके परोपकारी कामों में भी ( जिनमें जीव मरने का प्रश्न उपस्थित नहीं होने पर भी ) एकान्त पाप का होना बतलाया जा रहा है ! __ शास्त्रोंने, शास्त्रों को सर्वज्ञ प्रणीत एवम् भगवान्के बचन आदि नाना तरहके आकर्षक शब्दों की पुट देकर और अक्षर अक्षर सत्य कह कर तथा अन्यथा समझने वाले को अनन्त संसार परिभ्रमण का भय दिखाकर मानव की बुद्धि को जड़वत् बना दिया है । और प्रचारकों के लम्बे समय के प्रचारने आज मनुष्य के दिमाग को अन्धश्रद्धा से इतना अधिक भर दिया है कि वह यह सोचने में भी असमर्थ हो गया है कि ये शास्त्र हमारे जैसे मनुष्यों के द्वारा ही निर्मित हैं। शास्त्रों की बात' शीर्षक मेरे लेखों से यह भली प्रकार प्रमाणित हो चुका है कि वर्तमान जैनशास्त्रों में प्रत्यक्ष प्रमाणित होनेवाली असत्य, अस्वाभाविक एवम् असम्भव बातं एक नहीं अनेक हैं। फिर भी जैन शास्त्रों के एक धुरन्धर एवम् संस्कृत प्राकृत भाषा के विद्वान आचार्य यह भावना लिये हुऐ बैठे हैं कि जैनशास्त्रों की भूगोल-खगोल सम्बन्धी बातें यदि आज के दिन प्रत्यक्ष में अप्रमाणित हो रही हैं और विज्ञान की कसौटी पर गलत उतर रही हैं तो क्या हुआ; एक समय ऐसा आयगा जब जैनशास्त्रों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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