Book Title: Jain Shastro ki Asangat Bate
Author(s): Vaccharaj Singhi
Publisher: Buddhivadi Prakashan

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Page 190
________________ १८२ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! पहुंचाने, मारने आदि में भी हिंसा का होना बताया गया है और हिंसा में पाप माना गया है। हिंसा करने और हिंसा से बचने के लिये तीन करण ( करना, करवाना और करनेकरवाने का अनुमोदन करना) और तीन जोग (मन, बचन और काया ) की व्यवस्था बताई गई है। विचार के देखा जाय तो ऐसी अवस्था में किसी का भी बिना जीवों की हिंसा किये किसी भी कार्य को कर सकना असक्य है। मुंह से श्वास और शब्द निकलने पर वायु-काय के असंख्यात जीवों के मरने की हिंसा, पानी पीने में अप्काय यानी जलके असंख्यात जीवों के मरने की हिंसा, अग्नि जलाकर काम में लाने पर अग्नि-काय के असंख्यात जीवों के मरने की हिंसा और पृथ्वी के ऊपरका कुछ भाग ( दस-पांच अंगुल ऊपरकी सतह का भाग ) छोड़ कर अन्य सब भाग पर चलने फिरने आदि किसी प्रकार के स्पर्श करने से पृथ्वी-काय के असंख्यात जीवों के मरने की हिंसा! इस हिंसा से मनुष्य को पाप लगने का जिन शास्त्रों में कथन हो, उन शास्त्रों को मानने वाले का इस संसार में बिना पाप किये एक क्षण भी जिन्दा रह सकना असम्भव है-चाहे वह कितना भी त्यागी और धर्मात्मा क्यों न हो जाय। यदि उस त्यागी को ऐसी हिंसा और पाप से बचना है तो अपना शरीर त्याग करे तो वह भले ही अहिंसक रह सकने की आशा करले वरना सर्वथा असम्भव बात है। यह एक सीधी-सी तर्क है कि प्यासे मरते हुए प्राणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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